________________
६४२ ]
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५५४ पर्यंत कपोत, नील, कृष्ण लेश्या को प्राप्त होइ, एकेंद्री भया । तहा उत्कृष्टपनै आवली का असंख्यातवां भाग प्रमाण जे पुद्गल द्रव्य परिवर्तन, तिनिका जितना काल होइ, तितने काल भ्रमण कीया; पीछे विकलेंद्री भया । तहां उत्कृष्टपने संख्यात हजार वर्ष प्रमाण काल भ्रमण कीया; पीछे पंचेंद्री भया । तहां प्रथम समय तै लगाइ एक - एक अंतर्मुहूर्त काल विषे अनुक्रम तैं कृष्ण, नील, कपोत कौं प्राप्त होइ, तेजो
श्या कौं प्राप्त भया । जैसे जीव के तेजोलेश्या का छह अंतर्मुहूर्त सहित अर संख्यात सहस्र वर्ष करि अधिक आवली का प्रसंख्यातवां भाग प्रमाण पुद्गल परावर्तन मात्र उत्कृष्ट अंतर जानना ।
अब पद्म लेश्या का अंतर कहैं हैं
कोई जीव पद्मलेश्या विषं तिष्ठता था, ताकौं छोडि तेजोलेश्या कौ प्राप्त भया, तब पद्म के अंतर का प्रारंभ कीया । तहां तेजोलेश्या विषै अंतर्मुहूर्त तिष्ठि करि सौधर्म - ईशान विषे उपज्या, तहां पल्य का असंख्यातवां भाग करि अधिक दोय सागर पर्यंत रह्या । तहा स्यों चय करि एकेंद्री भया । तहां आवली का असंख्यातवां भाग प्रमाण पुद्गल परावर्तन काल मात्र भ्रमण करि पीछे विकलेद्री भया । तहां संख्यात सहस्र वर्प कालमात्र भ्रमण करि पंचेंद्री भया । तहां प्रथमसमय तै लगाइ, एक - एक अंतर्मुहूर्त कृष्ण, नील, कपोत, तेजोलेश्या कौं प्राप्त होइ, पद्मलेश्या को प्राप्त भया । असे जीव कैं पद्मलेश्या का पंच अतर्मुहूर्त श्रर पल्य का असंख्यातवां भाग करि अधिक दोय सागर र संख्यात हजार वर्षनि करि अधिक आवली का असंख्यातवां भाग प्रमाण पुद्गल परावर्तन मात्र उत्कृष्ट अंतर जानना ।
आगे शुक्ल लेश्या का अतर कहै है
कोई जीव शुक्ललेश्या विषै तिष्ठे था, तहांस्यों पद्मलेश्या कौ प्राप्त भया । तव शुक्ललेश्या का अंतर का प्रारंभ भया । तहां क्रम ते एक-एक अंतर्मुहूर्त काल मात्र पद्म - तेजोलेश्या को प्राप्त होइ सौधर्म - ईशान विषै उपजि, तहा पूर्वोक्त प्रमाण काल रहि, तहां पीछे एकेद्री होइ, तहा भी पूर्वोक्त प्रमाण काल मात्र भ्रमण करि, पीछे विकलेद्री होइ, तहा भी पूर्वोक्त प्रमारण कालमात्र भ्रमण करि, पचेंद्री होइ, प्रथम समय तैं एक-एक अंतर्मुहूर्त काल मात्र क्रम ते कृष्ण, नील, कपोत, तेज, पद्मलेश्या कौं प्राप्त होइ, शुक्ललेश्या कौ प्राप्त भया । औसे जीव के सात अतर्मुहूर्त अ संख्यात सहस्र वर्ष र पल्य का असंख्यातवां भाग करि अधिक दोय सागर करि अधिक