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________________ ६२२ ! [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५४४ पूर्वोक्त वेदना समुद्घातवाले जीवनि का प्रमाण की गुरिगए, तब वेदना समुद्घात विषै क्षेत्र होइ, कषाय समुद्घांतवाले जीवनि के प्रमाण कौ गुणें, कषाय समुद्घात विषै क्षेत्र का परिमाण होइ । बहुरि वैक्रियिक समुद्घात विषै पद्मलेश्यावाले जीव सनकुमार - माहेंद्र विषै बहुत हैं । ताते तिनकी अपेक्षा कथन करें है - सनत्कुमार - माहेंद्रविषै देव जगच्छेणी का ग्यारहवां वर्गमूल भाग जगच्छ्रे गी कौ दीएं, जो प्रमाण होइ, तितने हैं । इस राशि कौं संख्यात का भाग दीजिए, तब बहुभाग स्वस्थानस्वस्थान विषै जीव जानने । अवशेष एक भाग रह्या, ताकौं संख्यात का भाग दीजिए, तहा बहुभाग प्रमाण विहारवत् स्वस्थान विषै जीव जानने । अवशेष एक भाग रह्या, ताकौ संख्यात का भाग दीजिए, तहां बहुभाग प्रमाण वेदना समुद्घात विपै जीव जानने । अवशेष एक भाग़ रह्या, ताको संख्यात का भाग दीजिए, तहां बहुभाग प्रमाण कषाय समुद्घात विषै जीव जानने । अवशेष एक भाग रह्या, तीहि प्रमाण वैक्रियिक समुद्घात विषै जीव जानने । इस वैक्रियिक समुद्घातवाले जीवनि का प्रमाण कौं एक जीव संबंधी विक्रियारूप हस्तिघोटकादिकनि की संख्यात घनांगुल प्रमाण अवगाहना, तिसकरि गुणै, जो प्रमाण होइ, सोई वैक्रियिक समुद्घात विषै क्षेत्र जानना । बहुरि मारणांतिक समुद्घात वा उपपाद विषे भी क्षेत्र सनत्कुमार माहेद्र ग्रपेक्षा बहुत है । तातै सनत्कुमार - माहेद्र की अपेक्षा कथन कीजिए है ---- मरदि श्रसंखेज्जदिमं, तस्सासंखा य विग्गहे होंति । तस्सासंखं दूरे, उववादे तस्स खु प्रसंखं ॥ - जो सनत्कुमार माहेद्रवासी जीवनि का प्रमाण कह्या, ताको असंख्य कहिए पल्य का असंख्यातवां भाग, ताका भाग दीजिए, तहां एक भाग प्रमाण समय समय जीव मरण को प्राप्त हो है । बहुरि इस राशि कौ पल्य का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहा बहुभाग प्रमारण विग्रह गतिवालो का प्रमाण है । बहुरि इस राशि कौ पल्य का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहां बहुभाग प्रमाण मारणांतिक समुद्घातवाले जीव है । बहुरि इसको पल्य का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहा एक भाग प्रमाण दूर मारणांतिक समुद्घात वाले जीव है । बहुरि इसकौ पल्य का असंख्यातवा भाग का भाग दीजिए, तहां एक भाग प्रमाण उपपाद का दंड विषै स्थित जीव हैं । तहां एक जीव अपेक्षा मारणांतिक समुद्धात विषै क्षेत्र तीन राजू लंबा सूच्यंगुल का संख्यातवां भागमात्र चौडा वा ऊंचा क्षेत्र है । इन सनत्कुमार माहें
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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