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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ५४३
६१८ ]
करि सात धनुष ऊचा पर सात धनुष के दशवे भाग मुख की चौड़ाई है, प्रमाण जाका जैसा है, सोयाका क्षेत्रफल कीजिए है ।
वासोत्ति गुणो परिही, वास चउत्थाहदो दु खेत्तफलं । खेत्तफलं वेहिगुणं, खादफलं होदि सव्वत्थ ||
इस करणसूत्र करि क्षेत्रफल करना । गोल क्षेत्र विषे चौडाई के प्रमाण त तिगुणा तो परिधि होइ । इस परिधि को चौडाई का चौथा भाग ते गुरौं, क्षेत्रफल होइ । इस क्षेत्रफल कौ ऊँचाई रूप जो बेध, ताके प्रमाण करि गुणे, घनरूप क्षेत्रफल हो है । सो इहा सात धनुष का दशवा भागमात्र चौडाई, ताकौं तिगुणी कोए, परिधि हो । याको चौडाई का चौथा भाग करि गुणै, क्षेत्रफल हो है । याकौ वेध सात धनुष करि गुणै, घनरूप क्षेत्रफल हो है । बहुरि जो घनराशि होइ, ताके गुणकार भागहार घनरूप ही होइ । तातै इहा अंगुल करने के निमित्त एक धनुप का fara अगुल होइ, सो जो धनुषरूप क्षेत्रफल भया, ताकौ छिनवे का घन करि गुरिए । बहुरि इहां तो कथन प्रमाणांगुल ते है । अर देवनि के शरीर का प्रमाण उत्सेधागुल है । तात पाच से का घन का भाग दीजिए, असे करते प्रमाणरूप - घनागुल के संख्यातवे भाग प्रमाण एक देव का शरीर की अवगाहना भई । इसकरि पूर्वे जो स्वस्थानस्वस्थान विषे जीवनि का प्रमाण कह्या था, ताकौ गुणै, जो प्रमाण होइ, तितना क्षेत्र स्वस्थानस्वस्थान विषै जानना ।
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बहुरि वेदनासमुद्घात विषै वा कषायसमुद्घात विषै प्रदेश मूल शरीर ते बाह्य
निक्स, सो एक प्रदेश क्षेत्रको रोकै वा दोय प्रदेश मात्र क्षेत्र को रोके, औरौं एक-एक प्रदेश बघता जो उत्कृष्ट क्षेत्र रोकें, तो मूल शरीर ते चौडाई विषे तिगुणा क्षेत्र रोके अर उचाई मूल शरीर प्रमाण ही है । सो याका घनरूप क्षेत्रफल कीएं, मूल शरीर के क्षेत्रफल तै नव गुणा क्षेत्र भया, सो जघन्य एक प्रदेश अर उत्कृष्ट मूल शरीर तै नव गुणा क्षेत्र भया; सो हीनाधिक को बरोबरि कीए एक जीव के मूल शरीर तै साढा च्यारि गुणा क्षेत्र भया; सो शरीर का प्रमाण पूर्वे घनागुल के सख्यातवे भाग प्रमाण का था, ताकौ साढा चारि गुणा कीजिए, तब एक जीव संबंधी क्षेत्र भया । इसकरि वेदना समुद्घातवाले जीवनि का प्रमाण को गुणिए, तब वेदना समुद्घात विपै क्षेत्र होइ । बहुरि कषायसमुद्घातवाले जीवनि का प्रमाण कौं गुणिए तब कषाय समुद्घात विषै क्षेत्र होइ । बहुरि विहार करते देवनि के मूल शरीर तै