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[गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५२५-५२६ तेजो लेश्या का मध्यम अंश करि मरे, असे भोगभूमिया मिथ्यादृष्टी तिर्यंच वा मनुष्य ते भवनवासी, व्यतर, ज्योतिषी देवनि विष उपज हैं । बहुरि कृष्ण - नील - कपोत - पीत इन च्यारि लेश्यानि के मध्यम अंशनि करि मरे, असे तिथंच वा मनुष्य भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी वा सौधर्म - ईशान स्वर्ग के वासी देव, मिथ्यादृष्टी, ते वादर पर्याप्तक पृथ्वीकायिक, अप्कायिक वनस्पती कायिक विष उपज है। भवनत्रयादिक की अपेक्षा इहां पीत लेश्या जाननी । तियंच मनुष्य अपेक्षा कृष्णादि तीन लेश्या जाननी।
किण्ह-तियारणं मज्झिम-अंस-मुदा तेउ-वाउ-वियलेसु । सुर-रिणरया सग-लेस्सहिं, णर-तिरियं जांति सग-जोगं ॥५२८।।
कृष्णत्रयाणां मध्यमांशमृताः तेजोवायुविकलेषु।
सुरनिरयाः स्वकलेश्याभिः नरतिर्यञ्चं यान्ति स्वकयोग्यम् ॥५२८॥ टीका - कृष्ण, नील, कपोत के मध्यम अंश करि मरे, असे तिर्यच वा मनुष्य ते तेजःकायिक वा वातकायिक विकलत्रय असैनी पंचेद्री साधारण वनस्पती, इनिविर्षे उपज है । बहुरि भवनत्रय आदि सर्वार्थसिद्धि पर्यंत देव अर धम्मादि सात पृथ्वी संबंधी नारकी ते अपनी-अपनी लेश्या के अनुसारि यथायोग्य मनुष्यगति वा तियंचगति को प्राप्त हो है। इहां इतना जानना - जिस गति संबधी पूर्व प्रायु बंध्या होइ, तिस ही गति विर्ष जो मरण होते जो लेश्या होइ, ताके अनुसारि उपजे है। जैसे मनुष्य के पूर्व देवायु का बध भया, बहुरि मरण होते कृष्णादि अशुभ लेश्या होइ तौ भवनत्रिक विष ही उपज है, जैसे ही अन्यत्र जानना । इति गत्यधिकार ।
आगे स्वामी अधिकार सात गाथानि करि कहै हैकाऊ काऊ काऊ, पीला णीला य णील-किण्हा य । किण्हा य परमकिण्हा, लेस्सा पढमादि पुढवीणं ॥५२६॥
कपोता कपोता कपोता, नीला नीला च नीलकृष्णे च ।
कृष्णा च परमकृष्णा, लेश्या प्रथमादिपृथिवीनाम् ॥२६॥ टीका - इहां भावलेश्या की अपेक्षा कथन है । तहां नारकी जीवनि के कहिए है - तहां धम्मा नामा पहिली पृथ्वी विषै कपोत लेश्या का जघन्य अंश है। वंशा दूसरी पृथ्वी विष कपोत का मध्यम अंश है। मेघा तीसरी पृथ्वी विष कपोत