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________________ 'सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका [ ५८६ लोकानामसंख्येयान्युदयस्थानानि कषायगांरिण भवति । तत्र क्लिष्टानि अशुभानि, शुभानि विशुद्धानि तदालापात् ॥४६६।। टोका - कषाय संबंधी अनुभागरूप उदयस्थान असख्यात लोक प्रमाण है । तिनिकौं यथायोग्य असंख्यात लोक का भाग दीजिए। तहा एक भाग बिना अवशेष बहुभाग मात्र तौ सक्लेश स्थान है। ते पणि असख्यात लोक प्रमाण है । बहुरि एक भाग मात्र विशुद्धि स्थान है । ते परिण असंख्यात लोक प्रमाण है, जाते असख्यात के भेद बहुत है । तहां संक्लेश स्थान तो अशुभलेश्या संबंधी जानने, पर विशुद्धिस्थान शुभलेश्या सबंधी जानने। तिव्वतमा तिब्बतस, तिव्वा असुहा सुहा लदा मंदा। मंदतरा मंदतमा, छहारणगया हु पत्तेयं ॥५००॥ तीवतमास्तीवतरास्तीवा अशुभाः शुभास्तथा मंदाः। मंदतरा मंदतमाः, षट्स्थालगता हि प्रत्येकम् ।।५००॥ टीका - पूर्वे जे असंख्यात लोक के बहुभागमात्र अशुभ लेश्या सबधी संक्लेश स्थान कहे, ते कृष्ण, नील, कपोत भेद करि तीन प्रकार है। तहा पूर्व सक्लेशस्थाननि का जो प्रमाण कहा, ताकौ यथायोग्य असख्यात लोक का भाग दीए, तहा एक भाग बिना अवशेष बहुभाग मात्र कृष्णलेश्या सबधी तीव्रतम कषायरूप सक्लेशस्थान जानने । बहुरि तिस अवशेष एक भाग को असख्यात लोक का भाग दीजिए, तहां एक भाग बिना अवशेष बहुभाग मात्र नील लेश्या सबंधी तीव्रतर कपायरूप सल्केश स्थान जानने । बहुरि तिस अवशेष एक भाग मात्र कपोत लेश्या सवधी तीव्र कपायरूप सक्लेशस्थान जानने । बहुरि असंख्यात लोक का एक भाग मात्र शुभ लेश्या सबंधी विशुद्धि स्थान कहे; ते तेज, पद्म, शुक्ल भेद करि तीन प्रकार है। तहां पूर्व जो विशुद्धिस्थाननि का प्रमाण कह्या, ताको यथायोग्य असख्यात लोक का भाग दीजिए, तहां एक भाग बिना अवशेष बहुभाग मात्र तेजो लेश्या सम्बन्धी मदकपाय रूप विशुद्धि स्थान जानने । बहुरि तिस अवशेप एक भाग को असख्यात लोक का भाग दीजिए, तहां एक भाग बिना अवशेष भाग मात्र पद्मलेश्या सवधी मदतर कपायरूप विशुद्धिस्थान जानने । बहुरि तिस अवशेष एक भाग मात्र शुक्ललेश्या सवधी मंदतम कपायरूप विशुद्धि स्थान जानने । तहा इनि कृष्णलेश्या प्रादि छह स्थाननि विप एक -
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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