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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ] [ 53 करने कौं समर्थ है । तातै तिनि प्रकाशनि की उपमा देने योग्य नाही, असा समस् लोक र अलोक विषै अधकार रहित केवल प्रकाशरूप केवलदर्शन नामा उद्यो जानना । आगे दर्शनमार्गणा विषै जीवनि की संख्या दोय गाथानि करि कहैं है जोगे चउरक्खाणं, पंचक्खाणं च खीणचरिमाणं । चक्खूणमोहिकेवलपरिमाणं ताण णाणं च ॥ ४८७ ॥ योगे चतुरक्षाणां, पंचाक्षाणां च क्षीणचरमाणाम् । चक्षुषामवधिकेवलपरिमाणं तेषां ज्ञानं च ॥४८७ ॥ टीका - मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकषाय गुणस्थान पर्यंत चक्षुदर्शन ही है तिनके दो भेद है - एक शक्तिरूप चक्षु दर्शनी, एक व्यक्तिरूप चक्षुदर्शनी । तहा लब्धि अपर्याप्तक चौंइद्री र पंचेद्री तौ, शक्तिरूप चक्षुदर्शनी है, जाते नेत्र इद्रिय पर्याप्ति की पूर्णता पर्याप्त अवस्था विषे नाही है । तातें तहां प्रगटरूप चक्षुदर्शन न प्रवर्ते है बहुरि पर्याप्त चौइंद्री र पंचेद्री व्यक्तरूप चक्षुदर्शनी है; जाते तहा प्रकटरूप चक्षु दर्शन है। तहा बेद्री, तेद्री, चौइंद्री, पचेद्री आवली का असख्यातवा भाग प्रतरागुल की दीएं, जो प्रमाण आवै, ताका भाग जगत्प्रतर को दीए, जो प्रमाण होइ, तितने है, तो चौइंद्री, पचेद्री कितने है ? असे प्रमाण राशि च्यारि, फलराशि वसनि का प्रमारण, इच्छाराशि दोय, तहा इच्छा कौ फलराशि करि गुणि, प्रमारण का भाग दीए, जो प्रमाण होइ, तितना चौइंद्री, पचेद्री राशि है । तहां बेदी आदि क्रम ते घटते हैं । ता किंचिदून करि बहुरि तिस विषै पर्याप्त जीवनि का प्रमाण घटावना | तात तिस प्रमाण में स्यों भी किछु घटाये जो प्रमाण होइ, तितना शक्तिगत चक्षुदर्शनी जानने । बहुरि से ही स पर्याप्त जीवनि का प्रमाण को च्यारि का भाग देइ, दो गुणा करि, तामै किचिदून की जो प्रमाण होइ, तितना व्यक्तिरूप चक्षुदर्शनी है । इद्रिय मार्गरा विषे जो चौइंद्री, पचेद्रिय जीवनि का प्रमाण कया है, तिनको मिलाए चक्षुदर्शनी जीवनि का प्रमाण हो है । बहुरि अवधिदर्शनी जीवनि का प्रमाण अवधिज्ञानी जीवनि का परिमाण के समान जानना ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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