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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
छित्वा च पर्यायं पुराणं यः स्थापयति श्रात्मानम् । पंचयमे धर्मे स, छेदोपस्थापको जीवः ॥ ४७१॥
टीका - सामायिक चारित्र को धारि, बहुरि प्रमाद तै स्खलित होइ, सावद्य क्रिया को प्राप्त हूवा असा जो जीव, पहिले भया जो सावद्यरूप पर्याय ताका प्रायश्चित्त विधि तै छेदन करि अपने आत्मा कौं व्रतधारणादि पंच प्रकार संयमरूप धर्म विप स्थापन करें; सोई छेदोपस्थापन संयमी जानना ।
छेद कहिए प्रायश्चित्त तीहिकरि उपस्थापन कहिए धर्म विषै आत्मा कौ स्थापना; सो जाकै होइ, अथवा छेद कहिए अपने दोष दूर करने के निमित्त पूर्वे कीया था तप, तिसका उस दोष के अनुसारि विच्छेद करना, तिसकरि उपस्थापन कहिए निर्दो सयम विषै आत्मा कौ स्थापना; सो जाके होइ, सो छेदोपस्थापन सयमी है । अपना तप का छेद हो है, उपस्थापन जाकै, सो छेदोपस्थापन है, जैसी निरुक्ति जानना ।
पंच-समिदो ति-गुत्तो परिहरइ सदा वि जो हु सावज्जं । पंचेक्कजमो पुरिसो, परिहारयसंजदो सो हु१ ॥४७२॥१
पंचसमितः त्रिगुप्तः, परिहरति सदापि यो हि सावद्यम् । पंचैकयमः पुरुषः, परिहारकसंयतः स हि ||४७२ ।।
टीका - पंच समिति, तीन गुप्ति करि संयुक्त जो जीव, सदा काल हिसारूप साव का परिहार करें, सो पुरुष सामायिकादि पंच सयमनि विषै परिहारविशुद्धि नामा संयम का धारी प्रकट जानना ।
तीसं वासो जम्मे, वासपुधत्तं खु तित्थयरमूले । पंचक्खाणं पढिदो, संझणदुगाउयविहारो ॥४७३ ॥
त्रिशद्वर्षो जन्मनि वर्षपृथक्त्वं खलु तीर्थकरमूले । प्रत्याख्यानं पठितः, संध्योनद्विगव्यूतिविहारः ॥ ४७३॥
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१. षट्खडागम २ पाठभेद
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- घवला पुस्तक १, पृष्ठ ३७४, गाथा स. १८९
पच - जमेय - जमो वा ।