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सम्यग्जानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ ५५७ शशानाः प्रथम, द्वितीयं तु सनत्कुमार-माहेंद्राः ।
तृतीयं तु ब्रह्म-लांतवाः शुक्र-सहस्रारकाः तुरियम् ॥४३०॥ टीका - सौधर्म - ईशानवाले देव अवधि करि प्रथम नरक पृथ्वी पर्यंत देखें हैं । बहुरि सनत्कुमार माहेद्रवाले देव दूसरी पृथ्वी पर्यंत देखें है। बहुरि ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर लातव कापिष्ठवाले देव तीसरी पृथ्वी पर्यत देख है । बहुरि शुक्र-महाशुक्र, शतारसहस्रारवाले देव चौथी पृथ्वी पर्यंत देखें है -
प्राणद-पाणदवासी, पारण तह अच्चुदा य पस्संति । पंचमखिदिपेरंतं, छछि वेज्जगा देवा ॥४३१।।
मानतप्राणतवासिनः, पारणास्तथा अच्युताश्च पश्यति । पंचमक्षितिपर्यंत, षष्ठी गैवेयका देवाः ॥४३॥
टीका - आनत प्राणत के वासी तथा आरण अच्युत के वासी देव पांचवी पर्यंत देखै है । बहुरि नवग्रैवेयकवाले देव छठी पृथ्वी पर्यंत देखें है ।
सव्वं च लोयणालि, पस्संति अणुत्तरेसु जे देवा । सक्खेत्ते य सकश्मे, रूवगदमणंतभागं च ॥४३२॥
सर्वा च लोकनाली, पश्यंति अनुत्तरेषु ये देवाः।
स्वक्षेत्रे च स्वकर्मणि, रूपगतमनंतभागं च ॥४३२॥ टीका - नव अनुदिश विमान अर पाच अनुत्तर विमान के वासी सर्व लोकनाली, जो त्रसनाली ताकौ देखे है।
- यह भावार्थ जानना-सौधर्मादिवासी देव ऊपरि अपने २ स्वर्ग का विमान का ध्वजादड का शिखर पर्यंत देखे है । बहुरि नव अनुदिश, पच अनुत्तर विमान के वासी देव;ऊपरि अपने विमान का शिखर पर्यंत अर नीचे को बाह्य तनुवात पर्यंत सर्व प्रसनाली कौं देखै है; सो अनुदिश विमानवाले तौ किछ एक अधिक तेरह राजू प्रमाण लंबा अर अनुत्तर विमानवाले के च्यारि से पचीस धनुप घाटि, इकवीस योजन करि हीन, चौदह राजू प्रमाण लबा अर एक राजू चौडा अवधि का विषयभूत क्षेत्र को देखें है । असा इहां क्षेत्र का परिमाण कीया है, सो स्थानक का नियमप जानना । क्षेत्रका परिमाण लीए, नियमरूप न जानना । जाते अच्युत स्वर्ग पर्यंत के वासी विहार फरि