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________________ ५०६ ] [ गोम्मटसार जौबकाण्ड गाया ३६१-३६२ बहुरि अंग बाह्य जो सामायिकादिक, तिनि विपै 'जनकनजयसीम' कहिए आठ, बिदी, एक, बिदी, आठ, एक, सात, पाच अक तिनिके आठ कोडि एक लाख आठ हजार एक सै पिचत्तरि (८०१०८१७५) अक्षर जानने । चंद-रवि-जंबुदीवय-दीवसमुद्दय-वियाहपण्णत्ती । परियम्मं पंचविहं, सुत्तं पढमाणि जोगमदो ॥३६१॥ पुव्वं जल-थल-माया-पागासय-रूवगयमिमा पंच । भेदा हु चूलियाए, तेसु पमाणं इणं कमसो ॥३६२॥ चंद्ररविजंबूद्वीपकद्वीपसमुद्रकव्याख्याप्रज्ञप्तयः । परिकर्म पंचविधं, सूत्रं प्रथमानुयोगमतः ॥३६१॥ पूर्व जलस्थलमायाकाशकरूपगता इमे पंच । भेदा हि चूलिकायाः, तेषु प्रमाणमिदं क्रमशः ॥३६२॥ टीका - दृष्टिवाद नामा बारहवां अग के पंच अधिकार है - परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत, चूलिका ए पच अधिकार है, तिनि विर्ष परितः कहिए मर्वाग ते कर्माणि कहिये जिन ते गुणकार भागहारादि रूप गणित होइ, असे करणसूत्र, वे जिस विषै पाइए, सो परिकर्म कहिये, सो परिकर्म पाच प्रकार है - चद्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जबूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, व्याख्याप्रज्ञप्ति । तहा चंद्रप्रज्ञप्ति - चद्रमा का विमान, आयु, परिवार, ऋद्धि, गमनविशेष, वृद्धि, हानि, सारा, आधा, चौथाई ग्रहण इत्यादि प्ररूप है । बहुरि सूर्यप्रज्ञप्ति - सूर्य का आयु मडल, परिवार, ऋद्धि, गमन का प्रमाण ग्रहण इत्यादि प्ररूप है । बहुरि जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - जंबद्वीपस बधी मेरुगिरि, कुलाचल, द्रह, क्षेत्र, वेदी, वनखंड, व्यंतरनि के मदिर, नदी इत्यादि प्ररूपै है । बहुरि द्वीपसागरप्रज्ञप्ति - असंख्यात द्वीप समुद्र सबंधी स्वरूप वा तहां तिष्ठते ज्योतिषी, व्यतर, भवनवासीनि के आवास तहा अकृत्रिम जिन मदिर, तिनको प्ररूप है । बहुरि व्याख्याप्रज्ञप्ति – रूपी, अरूपी, जीव, अजीव आदि पदार्थनि का वा भव्य अभव्य आदि प्रमाण करि निरूपण करै है। जैसै परिकर्म के पंच भेद है।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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