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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका ]
[ ४७ बहुरि सामान्य संख्यात, असंख्यात,अनंत की, पर इनके इकईस भेदनि की, अर पल्य आदिआठ उपमा प्रमाण की, पर इनके अर्धच्छेद वा वर्गशलाकानि की सदृष्टिनि का वर्णन है । बहुरि परिकर्माष्टक विर्ष संकलनादि होते जैसे सहनानि हो है पर बहुत प्रकार संकलनादि होते वा संकलनादि आठ विर्षे एकत्र दोय, तीन आदि होतें जो सहनानी हो है, वा संकलनादि विष अनेक सहनानी का एक अर्थ हो है इत्यादिकिनि का वर्णन है । पर स्थिति-अनुभागादिक विष आकाररूप सहनानी है, वा केई इच्छित सहनानी है, इत्यादिकनि का वर्णन है । जैसे सामान्य वर्णन करि पीछे श्रीमद् गोम्मटसार नामा मूलशास्त्र वा ताकी जीवतत्त्वप्रदीपिका नामा टीका, ताविर्षे जिस-जिस अधिकार विष कथन का अनुक्रम लीए संख्यादिक अर्थ की जैसे-जैसे संदृष्टि है, तिनका अनुक्रम ते वर्णन है। तहां केई करण वा त्रिकोणयंत्र का जोड़ इत्यादिकनि का संदृष्टिनि का संस्कृत टीका विष वर्णन था और भाषा करते अर्थ न लिख्या था, तिनका इस संदष्टि अधिकार विष अर्थ लिखिएगा । अर मूलशास्त्र के यंत्ररचना विर्षे वा संस्कृत टीका विष केई संदृष्टिरूप रचना ही लिखी थी। तिनको अर्थपूर्वक इस संदृष्टि अधिकार विष लिखिएगा, सो इहां तिनकी सूचनिका लिखै विस्तार होई, तातै तहां ही वर्णन होगा सो जानना ।
इहां कोऊ कहै - मूलशास्त्र वा टीका विष जहां संदष्टि वा अर्थ लिख्या था, तहां ही तुम भी तिनके अर्थनि का निरूपण करि क्यों न लिखान किया ? तहां छोडि तिनको एकत्र करि संदृष्टि अधिकार विर्षे कथन किया सो कौन कारण ?
तहां समाधान ~ जो यहु टीका मंदबुद्धीनि के ज्ञान होने के अर्थि करिए है, सो या विषै बीचि-बीचि संदृष्टि लिखने ते कठिनता तिनको भास, तव अभ्यास ते विमुख होइ, तातै जिनको अर्थमात्र ही प्रयोजन होहि, सो अर्थ ही का अभ्यास करी अर जिनको संदृष्टि को भी जाननी होइ, ते संदृष्टि अधिकार विष तिनका भी अभ्यास करौ।
बहुरि इहां कोई कहै - तुम असा विचार कीया, परंतु कोई इस टीका का अवलंबन ते संस्कृत टीका का अभ्यास कीया चाहै, तो कैसे अभ्यास करै ?
ताकों कहिए है - अर्थ का तौ अनुक्रम जैसे संस्कृत टीका विप है, तैसे या विष है ही। पर जहां जो सदृष्टि आदि का कथन वीचि मै प्राव, ताकी मदृष्टि अधिकार विष तिस स्थल विष बाकी कथन है; ताकी जानि तहा अभ्यास करी । ऐसै विचारि संदृष्टि अधिकार करने का विचार कीया है ।