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________________ Rareeन्द्रिका भाषाटोका ] उपाय -पुव्वगाणिय-विरियपवादत्थिणत्थियपवादे । णाणासच्चपवादे, श्रादाकम्मपवादे य ॥ ३४५॥ पञ्चाक्खाणे विज्जाणुवादकल्लाणपाणवादे य । किरिया विसालपुच्चे, कमसोथ तिलोर्याबंदुसारे य ॥ ३४६ ॥ उत्पादपूर्वाग्रायणीयवीर्यप्रवादास्तिनास्तिकप्रवादानि । ज्ञानसत्यप्रवादे, आत्मकर्मप्रवादे च ॥ ३४५॥ प्रत्याख्यानं वीर्यानुवादकल्याणप्रारणवादानि च । क्रियाविशालपूर्व, क्रमशः श्रथ त्रिलोकबिंदुसारं च ॥ ३४६॥ | ४८७ टीका - चौदह पूर्वनि के नाम अनुक्रम ते असे जानने । १. उत्पाद, २. आग्रायणीय, ३. वीर्यप्रवाद, ४. अस्ति नास्ति प्रवाद, ५. ज्ञानप्रवाद, ६. सत्यप्रवाद, ७. आत्मप्रवाद, ८. कर्मप्रवाद, ६. प्रत्याख्यानप्रवाद, १०. विद्यानुवाद, ११. कल्याणवाद, १२. प्राणवाद, १३. क्रियाविशाल, १४. त्रिलोकविदुसार ये चौदह पूर्वनि के नाम जानने । इनिकै लक्षण आगे कहेंगे - इहां से जानना पूर्वोक्त वस्तुश्रुतज्ञान के ऊपरि क्रम ते एक एक अक्षर की वृद्धि लीएं, पदादिक की वृद्धि होते, दश वस्तु प्रमाण मे स्यों एक अक्षर घटाइए, तहा पर्यंत वस्तु समास ज्ञान के भेद है । ताके अत भेद विष वह एक अक्षर मिलाएं, उत्पाद पूर्व नामा श्रुतज्ञान हो है । बहुरि उत्पाद पूर्व श्रुतज्ञान के ऊपरि एक एक अक्षर-अक्षर की वृद्धि लीयें, पदादि की वृद्धि संयुक्त चौदह वस्तु होहि । तामैं एक अक्षर घटाइये, तहां पर्यंत उत्पादपूर्व समास के भेद जानने । ताके अंत भेद विषै वह एक अक्षर बधै, अग्रायणीय पूर्व नामा श्रुतज्ञान हो है । जैसे ही क्रम तै आगे आगे आठ आदि वस्तु की वृद्धि होते, तहा एक अक्षर घटावने पर्यंत तिस तिस पूर्व समास के भेद जानने । तिस तिस का अंत भेद विषै सो सो एक अक्षर मिलाएं, वीर्य प्रवाद आदि पूर्व नामा श्रुतज्ञान हो है । अंत का त्रिलोकविदुसार नामा पूर्व आगे ताका समास के भेद नाही है । जाते याके आगे श्रुतज्ञान के भेद का अभाव है ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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