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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३३३
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प्रमाण, सो न जानना, अन्य जानना । सोई कहिए है - असख्यात लोक मात्र षट्स्थान नि विषै जो अंत का षट्स्थान, ताका अंत का ऊर्वक वृद्धि लीएं जो सर्वोत्कृष्ट पर्याय समास ज्ञान ताकौ एक बार अष्टांक करि गुणै, अर्थाक्षर ज्ञान हो है । ताते याक अष्टांक वृद्धि युक्त स्थान कहिए ।
सो अष्टांक कितने प्रमाण लीएं हो है; सो कहिए है- श्रुत केवलज्ञान एक घाटि, एकट्टी प्रमाण अपुनरुक्त अक्षरनि का समूह रूप है । ताको एक घाटि, एकट्ठी का भाग दीएं, एक अक्षर का प्रमाण प्रावै है । तहां जेता ज्ञान के अविभाग प्रतिछेदन का प्रमाण है, ताकी सर्वोत्कृष्ट पर्याय समास ज्ञान का भेदरूप ऊर्वक के अविभाग प्रतिच्छेदनि के प्रमाण का भाग दीएं जेता प्रमाण आवै, सोई इहां अष्टांक का प्रमाण जानना । तातै अब तिस अर्थाक्षर ज्ञान की उत्पत्ति को कारण, जो अंत का ऊर्वक, ताकरि भाजित जो अर्थाक्षर, तीहि प्रमाण अष्टांक करि गुण्य, जो अंत का ऊर्वक, ताकौ गुणै; अर्थाक्षरं ज्ञान हो है । यह कथन युक्त है । जैसा जिनदेव कह्या है | बहुरि यह कथन अंत विषै धर्या हुवा दीपक समान जानना । ताते असे ही पूर्वे भी चतुरंक आदि अष्टांक पर्यंत षट् स्थाननि के भागवृद्धि युक्त वा गुणवृद्धि युक्त जे स्थान है, ते सर्व अपना अपना पूर्व ऊर्वक युक्त स्थान का भाग दीएं, जेता प्रमाण आवै, तितने प्रमाण करि तिस पूर्वस्थान ते गुणित जानने । असे श्रुत केवलज्ञान का सख्यातवां भाग मात्र अर्थाक्षर श्रुतज्ञान जानना । अर्थ का ग्राहक अक्षर ते उत्पन्न भया जो ज्ञान, सो अक्षर ज्ञान कहिए । अथवा प्रर्यते कहिए जानिए, सो अर्थ, अर द्रव्य करि न विनशै सो अक्षर । जो अर्थ सोई अक्षर, ताका जो ज्ञान, सो प्रर्थाक्षरज्ञान कहिये । अथवा श्रर्यंते कहिये श्रुतकेवलज्ञान का संख्यातवा भाग करि जाका निश्चय कीजिये; असा एक अक्षर, ताका ज्ञान, सो अर्थाक्षरज्ञान कहिये ।
अथवा अक्षर तीन प्रकार है लब्धि अक्षर, निर्वृत्ति अक्षर, स्थापना ग्रक्षर । तहा पर्यायज्ञानावरण आदि श्रुतकेवलज्ञानावरण पर्यत के क्षयोपशम ते उत्पन्न भई जो पदार्थ जानने की शक्ति, सो लब्धिरूप भाव इद्रिय, तीहि स्वरूप जो अक्षर कहिये अविनाश, सो लब्धि - अक्षर कहिये । जाते अक्षर ज्ञान उपजने को कारण है । वहरि कंठ, होठ, तालवा आदि अक्षर बुलावने के स्थान अर होठनि का परूपर मिलना, सो स्पृ' टता ताकी आदि देकरि प्रयत्न, तीहि करि उत्पन्न भया शब्द