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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका )
[ ४७७ जघन्य को दोय का अर एक घाटि सात गुणा उत्कृष्ट सख्यात का अर सात गुणा उत्कृष्ट सख्यात का गुणकार बहुरि दोय बार१ उत्कृष्ट सख्यात का अर छह का अर तीन बार दश का भागहार कीएं हो है । ताकी जुदा स्थापि, अवशेष का अपवर्तन कीएं, साधिक जघन्य को एक घाटि सात गुणा उत्कृष्ट सख्यात का अर गुणचास का तौ गुणकार भया । बहुरि उत्कृष्ट संख्यात छह हजार का भागहार हो है। इहां गुणकार विष एक घाटि है; तीहि संबधी द्वितीय ऋण का प्रमाण साधिक जघन्य को गुणचास का गुणकार बहुरि उत्कृष्ट सख्यात पर छह हजार का भागहार कीएं हो है । ताको जुदा स्थापि, अवशेष का अपवर्तन कीए, साधिक जघन्य को तीन सैं तियालीस का गुणकार अर छह हजार का भागहार हो है । इहा गुणकार मैं तेरह घटाइ, जुदा स्थापिए। तहां साधिक जघन्य को तेरह का गुणकार पर छह हजार का भागहार जानना । अवशेष साधिक जघन्य को तीन सै तीस का गुणकार अर छह हजार का भागहार रह्या । तहां तीस करि अपवर्तन कीएं साधिक जघन्य को ग्यारह का गुणकार, दश गुणा बीस का भागहार भया; सो एक जायगा स्थापिए । बहुरि इहां तेरह गुणकार मैं स्यो काढि जुदे स्थापि थे, तीहिं संबधी प्रमाण ते प्रथम, द्वितीय ऋण संबधी प्रमाण संख्यातगुणा घाटि है । तात किंचित् ऊन करि साधिक जघन्य किंचिदून तेरह गुणा को छह हजार का भाग दीए, इतना घन अवशेष रह्या, सो जुदा स्थापिए । बहुरि प्रक्षेपक - प्रक्षेपक संबधी गुणकार विष एक घटाया था, तिहि सबधी ऋण का प्रमाण साधिक जघन्य कौं सात का गुणकार, बहुरि उत्कृष्ट सख्यात अर दोय से का भागहार कीए हो है । ताकी जुदा स्थापि, अवशेष पूर्वोक्त प्रमाण साधिक जघन्य को उत्कृष्ट संख्यात का गुणकार अर दोय बार सात का गुणकार, अर उत्कृष्ट सख्यात दश दोय दश एक का भागहार, ताका अपवर्तन वा परस्पर गुणन कीए, साधिक जघन्य को गुणचास का गुणकार दोय सै का भागहार भया । यामै पूर्वोक्त पिशुलि संबंधी ग्यारह गुणकार मिलाए, साधिक जघन्य को साठि का गुणकार दोय सै का भागहार भया । इहां बीस करि अपवर्तन कीए, साधिक जघन्य को तीन का गुणकार, दश का भागहार भया। यामै प्रक्षेपक सबंधी प्रमाण साधिक जघन्य को सात का गुणकार, दश का भागहार जोडे, दश करि अपवर्तन कीए, वृद्धि का प्रमाण साधिक जघन्य हो है । यामै मूल साधिक जघन्य जोडे, लब्ध्यक्षर दूणा हो है । बहुरि पूर्व पिशुलि संबंधी ऋण रहित घन विष किंचिदून तेरह
१.ब, ग प्रति मे 'तीनवार' मिलता है।