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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका ]
[ ४५ आबाधाकाल का वर्णन है । बहुरि कर्मस्थिति विष निषेकनि का वर्णन है । बहुरि प्रथमादि गुणहानिनि के प्रथमादि निषेकनि का वर्णन है । बहुरि स्थितिरचना विष द्रव्य, स्थिति, गुणहानि, नानागुणहानि, दोगुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त इनके स्वरूप, का, अर अंकसंदृष्टि वा अर्थ अपेक्षा तिनके प्रमाण का वर्णन है । तहां नानागुणहानि अन्योन्याभ्यस्त राशि सर्व कर्मनि का समान नाहीं, तातै इनका विशेष वर्णन है । तहां मिथ्यात्वकर्म की नानागुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त जानने का विधान वर्णन है । इहा प्रसंग पाइ 'अंतधणं गुणगुरिणयं' इत्यादि करणसूत्रकरि गुणकाररूप पंक्ति के जोडने का विधान आदि वर्णन है । बहुरि गुणहानि, दो गुणहानि के प्रमाण का वर्णन है । तहां ही विशेष जो चय ताका प्रमाण वर्णन है । ऐसे प्रमाण कहि प्रथमादि गुरणहानिनि का वा तिनविर्षे प्रथमादि निषेकनि का द्रव्य जानने का विधान वा ताका प्रमाण अंकसंदृष्टि वा अर्थ अपेक्षा वर्णन है। बहुरि मिथ्यात्ववत् अन्यकर्मनि की रचना है। तहा गुणहानि, दो गुणहानि तो समान है, पर नानागुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त राशि समान नाहीं । तिनके जानने को सात पंक्ति करि विधान कहि तिनके प्रमाण का, अर जिस-जिसकाजेता-जेता नानागुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त का प्रमाण आया, ताका वर्णन है । बहुरि ऐसे कहि अंकसंदृष्टि अपेक्षा त्रिकोणयंत्र, अर त्रिकोणयंत्र का प्रयोजन, अर तहां एक-एक निषेक मिलि एक समयप्रबद्ध का उदय त्रिकोणयंत्र हो है । पर सर्व त्रिकोणयंत्र के निषेक जोड़े किंचिदून द्वयर्द्धगुणहानि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण सत्त्व हो है तिनका वर्णन है । बहुरि निरंतर-सांतररूप स्थिति के भेद, स्वरूप स्वामीनि का वर्णन है। बहुरि स्थितिबंध को कारण जे स्थितिबंधाध्यवसायस्थान तिनका वर्णन विष आयु आदि कर्म के स्थितिबंधाध्यवसायस्थाननि के प्रमाण का पर स्थितिबंधाध्यवसाय के स्वरूप जानने को सिद्धांत वचनिका वर्णनकरि स्थिति के भेदनि को कहि तिन विष जेते-जेते स्थितिबंधाध्यवसायस्थान सभवै तिनके जानने को द्रव्य, स्थिति, गुणहानि, नानागुणहानि, दो-गुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त का वा चय का, वा प्रथमादि गुणहानिनि का, वा तिनके निषेकनि का, वा आदि धनादिक का द्रव्यप्रमाण पर ताके जानने का विधान, ताका वर्णन है । बहुरि इहा एक-एक स्थितिभेद संबंधी स्थितिबन्धाध्यवसायस्थननि विर्ष नानाजीव अपेक्षा खंड हो है । तहां ऊपरली-नीचली स्थिति संबंधी खंड समान भी हो है; तातै तहां अनुकृष्टि-रचना का वर्णन है । तहा आयुकर्म का जुदा ही विधान है, तातै पहिले आयु की कहि, पीछे मोहाद्धिक की अनुकृष्टि-रचना का अंकसंदृष्टि वा अर्थ अपेक्षा वर्णन है । तहां