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________________ ૪૬૬ } [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३२६ होइ, ताकरि गुरिए, जो प्रमाण होइ, ताकौ जितनी बार संकलन कह्या, तामै एक जोडि, जो प्रमाण होइ, ताका भाग दीजिए, जो लब्ध होइ, तामै मुख जो पहिला स्थान का प्रमाण सो जोड़िए; जो प्रमाण होइ, ताकी जितनी बार सकलन कह्या होइ, तितनी जायगा गच्छ ते लगाइ, एक एक बघता अक माडि, परस्पर गुणै, जो प्रमाण होइ, सो तौ भाज्य । अर एक तें लगाइ एक एक बघता अंक मांडि, परस्पर गुणे, जो प्रमाण होइ, सो भागहार । तहां भाज्य कौ भागहार का भाग दीएं, जो लब्धराशि होइ, ताकरि गुणिए, जैसे करते समस्त विवक्षित बार सकलन धन आवे है । इहां उदाहरण कहिए है - जैसे छठा पर्याय समास का भेद विषे च्यारि घाटि गच्छ का जो दोय, ताका च्यारि बार सकलन धनमात्र चूरिंग कहिए । सो इहां गच्छ दोय, तामै एक घटाएं, एक याकौ एक बारादि सकलन धन रचना अपेक्षा दोय वार आदि संकलन की रचना उपजै है । सो एक एक बार बघता संकलन भया, तातै उत्तर का प्रमारण एक, ताकरि गुणै भी एक ही भया । याको इहां च्यारि बार संकलन कह्या, सो च्यारि में एक मिलाए, पाच भया, तिनिका भाग दीए एक का पांचवां भाग भया । यामै मुख जो आदिका प्रमाण एक सो समच्छेद करि मिलाएं, छह का पांचवां भाग भया । बहुरि इहां च्यारि बार कह्या है । सो तामै एक आदि एक एक बधता, च्यारि पर्यंत अंक मांडि ( १ |२| ३|४) परस्पर गुरौं, चौबीस (२४) भये; सो भागहार, अर गच्छ दोय का प्रमाण तै लगाइ एक एक बधता कमांड, (२|३|४|५) परस्पर गुणं एक सौ बीस ( १२० ) भाज्य, सो भाज्य की भागहार का भाग दीये, लब्धिराशि पांच, ताकरि पूर्वोक्त छह का पांचवां भाग को गुण छह भये । सोई दोय का च्यारि बार सकलन धन जानना । जैसे ही तीन का तीन बार संकलन धन पीछे गच्छ तीन, एक घटाये दोय उत्तर, एक करि गुण भी दोय, इहा तीन बार सकलन है । ताते एक अधिक बार प्रमाण च्यारि, ताका भाग दीये प्राधा, यामैं मुख एक जोडे ड्योढ भया । बहुरि एक आदि बार प्रमाण पर्यंत एक एक अधिक अक (१।२।३) परस्पर गुणै, भागहार छह अर गच्छ आदि एक एक अधिक अक ( ३।४।५) परस्पर गुण, भाज्य साठि भाज्य कौ भागहार का भाग दीए, पाये दश, इनिकरि पूर्वोक्त ड्योढ को गुणै, छठा भेद विषै तीन घाटि गच्छ का तीन बार संकलन धनमात्र पिशुलिपिशुलि पद्रह हो है । असे सर्वत्र विवक्षित सकलन धन त्यावने । बहुरि संस्कृत टीकाकार केशववर्णी अपने अभिप्राय करि तिनि प्रक्षेपक प्रक्षेपकादिक का प्रमाण ल्यावने निमित्त दोय गाथारूप कररण सूत्र कहे है -
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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