________________
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
| ४६५ करना होय, तितनी जायगा एक आदि एक एक बधता अंक माडि, जोडै, एक बार संकलन धन हो है। बहुरि एक बार संकलन धन विधान विषै जो पहिले अंक लिख्या था, सोई इहां दोय बार संकलन विर्ष पहिले लिखिए। अर उहा एक बार सकलन का दूसरा स्थान विषै जो अक था, ताको याका पहिला स्थान विष जोडै, जो प्रमाण होइ, सो दूसरा स्थान विषै लिखिये। अर उहां तीसरा स्थान विषै जो अंक था. ताकौं याका दूसरा स्थान विषै जोडे; जो होइ, सो तीसरा स्थान विष लिखिये । असें क्रमते लिखि, जोडै, दोय बार सकलन धन हो है । बहुरि इस दोय बार सकलन धन विष जो पहिले अक लिख्या, सोई इहां लिखिये । पर इस प्रथम स्थान में दोय बार सकलन का दूसरा स्थान का अक जोडै, दूसरा स्थान होइ । यामै वाका तीसरे स्थान का अक जोडे, याका तीसरा स्थान होइ । अस क्रम ते जितने का करना होइ, तितना जायगा लिखि जोडे । तीन बार सकलन धन होइ । याही प्रकार च्यारि बार आदि संकलन धनका विधान जानना ।
इहां उदाहरण कहिये है। जैसे पर्यायसमास का छठा भेद विष पांच का एक बार संकलन (धन) करना । तहा पाच जायगा क्रम ते एक, दोय, तीन, च्यारि, पांच का अक मांडि, जोडै, पद्रह होइ। सो इतने प्रक्षेपकप्रक्षेपक जानना । बहुरि च्यारि का दोय बार सकलन (धन) करना । तहां च्यारि जायगा क्रम ते एक, तीन, छह, दश माडि जो वीस होइ, सो इतने इतने पिशुलि जानने । बहुरि तीन का तीन बार संकलन (धन) करना तहां तीन जायगा क्रम ते एक, च्यारि, दश माडि जोडे, पंद्रह होइ; सो इतने पिशुलिपिशुलि जानने । बहुरि दोय का च्यारि वार सकलन करना। तहां दोय जायगा एक, पांच, माडि जोडै, छह होइ । सो इतने चूर्णि जानने । बहुरि एक का पाच जायगा सकलन (धन) करना तहा एक जायगा एक ही है, तातै ये चूणिचूणि एक ही जानना। जैसे ही अन्यत्र भी जानना । अव जैसे ये अंक माडि जोडे, एक बार सकलनादि विपै जो प्रमाण होड, ताके ल्यावने कौ करणसूत्र कहिये है।
व्येकपदोत्तरघातः सरूपवारोघृतो मुखेन युतः ।
रूपाधिकवारांताप्तपदाचंहतो वित्तं ॥१॥ जितने का संकलन धन करना होड, तिस प्रमाण इहा गच्छ जानना । तामै एक घटाइ, अवशेष को उत्तर जो क्रम ते जितनी जितनी वार वधता संकलन कह्या