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________________ ४५४ ] [ गोम्मटगार जीवकाण्ड गाया ३२०-३२१ अनुभाग रचना विषै भी स्थापित कीया जो सिद्धराणि का अनतवा भागमात्र श्रुतज्ञानावरण का द्रव्य, जो परमाणूनि का समूह, सो द्रव्य के अनुभाग की कम हानि-वृद्धि करि संयुक्त है । बहुरि नानागुणहानि स्पर्धक वर्गणारूप भेद लीएं है, तिस द्रव्य विषै सर्वं ते थोरा उदयरूप अनुभाग जाका क्षीण भया, असा जो सर्वघाती स्पर्धक, तिसही कौ पर्याय ज्ञान का आवरण कह्या है; तितने आवरण का सदा काल उदय न होइ, तातै भी पर्याय ज्ञान निरावरण ही है । सुहमणिगोदअपज्जत्तयस्स जादस्स पढमसमयम्हि । हवदि हु सव्वजहणणं, रिगच्चुग्धाडं णिरावरणं ॥ ३२० ॥ १ सूक्ष्मनिगोदापर्याप्तकस्य जातस्य प्रथमसमये । भवति हि सर्वजघन्यं, नित्योद्धाटं निरावरणम् ॥ ३२० ॥ टीका - सूक्ष्म निगोद लब्धि अपर्याप्तक जीव का जन्म होते पहिला समय विषै सर्व तै जघन्य शक्ति को लीएं पर्याय नामा श्रुतज्ञान हो है, सो निरावरण है । इतने ज्ञान का कबहू प्राच्छादन न होइ । याही नित्योद्धाटं कहिए सदाकाल प्रकट प्रकाशमान है । सो यहु गाथा पूर्वाचार्यनि करि प्रसिद्ध है । इहा अपना का व्याख्यान की दृढता के निमित्त उदाहरणरूप लिखी है । सुहमणिगोदपज्जत्तगेस सगसंभवेस भमिऊण । चरिमापुण्गतिवक्काणादिमवक्कट्ठियेव हवे ॥३२१॥ १. षट्खडागम सूक्ष्मनिगोदापर्याप्तकेषु स्वक संभवेषु भ्रमित्वा । चरमापूर्णत्रिवऋारणां आदिमवक्रस्थिते एव भवेत् ।। ३२१॥ टीका - सूक्ष्म निगोद लब्धि अपर्याप्तक जीव, सो अपने विषे सभवते जे छह हजार बारह बार क्षुद्रभव, तिनि विषै भ्रमरण करि अत का लब्धि अपर्याप्तकरूप क्षुद्रभव विषै तीन वक्रता लीए, जो विग्रह गति, ताकरि जन्म धर्या होइ, ताके विग्रह गति में पहिली वक्रता सबधी समय विषै तिष्ठता जीव ही के सर्व तै जघन्य पर्याय नामा श्रुतज्ञान हो है । बहुरि तिसही के स्पर्शन इद्रिय सबधी जघन्य मतिज्ञान हो है । - घवला पुस्तक ६, पृष्ठ २१ की टीका !
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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