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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाका 1
i ते पर्याय आदिक दश भेद कहे, तिनके समासनि करि दश भेद भए, मिलिकरि श्रुतज्ञान के बोस भेद भएं । ते कहिए है - १. पर्याय, २. पर्यायसमास, ३. अक्षर, ४. अक्षरसमास, ५. पद, ६. पदसमास, ७. सघात, ८ संघातसमास, ६. प्रतिपत्तिक, १०. प्रतिपत्तिकसमास, ११. अनुयोग, १२. अनुयोगसमास, १३. प्राभृतक-प्राभृतक, १४. प्राभृतक-प्राभृतकसमास, १५ प्राभृत, १६..प्राभृतसमास, १७. वस्तु, १८. वस्तुसमास, १६. पूर्व २०. पूर्वसमास जैसै बीस भेद है।
इहां अक्षरादि गोचर जो अर्थ, ताके जाननेरूप जो भाव श्रुतज्ञान, ताकी मुख्यता जाननी । बहुरि जाते श्रुतज्ञानावरण के भी तितने ही बीस भेद है; तातें श्रुतज्ञान के भी बीस भेद ही कहे हैं।
____ आगे पर्याय नामा प्रथम श्रुतज्ञान का भेद, ताका निरुपण के अथि च्यारि गाथा कहै है
णवरि विसेसं जाणे, सुहमजहणणं तु पज्जयं पारणं । पज्जायावरणं पुण, तदणंतरणाणभेदम्हि ॥३१॥
नवरि विशेषं जानीहि, सूक्ष्मजघन्यं तु पर्यायं ज्ञानम् ।
पर्यायावरणं पुनः, तदनंतरज्ञानभेदे ॥३१९॥ टीका - यह नवीन विशेष जानहु, जो पर्याय नामा प्रथम श्रुतज्ञान का भेद, सो सूक्ष्म निगोदिया लब्धि अपर्याप्त संबंधी सर्व ते जघन्य श्रुतज्ञान जानना । बहुरि पर्याय श्रुतज्ञान का आवरण, सो पर्याय श्रुतज्ञान की नाही आवरै है। वाके अनतरि जो पर्याय ज्ञान ते अनंत भाग वृद्धि लीएं पर्यायसमास ज्ञान का प्रथम भेद, तीहि विष पर्याय ज्ञान का आवरण है; जातै उदय आया जो पर्याय ज्ञान, आवरणके समय प्रबद्ध का उदयरूप निषेक, ताकै सर्वघाती स्पर्धकनि का उदय नाही, सो क्षय है. अर तेई सर्वघाती स्पर्धक, जे अगिले निषेक सबधी सत्ता मे तिप्ठे है, तिनिका उपशम है । अर देशघाती स्पर्धकनि का उदय है; सो असा पर्याय ज्ञानावरण का क्षयोपगम सदा पाइए तातै; पर्याय ज्ञान का आवरण करि पर्याय ज्ञान प्रावर नाही । पर्यायसमासज्ञान का प्रथमभेद ही आवर है । जो पर्याय ज्ञान भी आवर तो जान का अभाव होइ, ज्ञान गुणका अभाव भए, गुणी (अस) जीव द्रव्य का भी प्रभाव होड, सो जैसै होइ नाही; तातै पर्यायज्ञान निरावरण ही है ।