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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
{ ४३३ जो परिमाण होइ, तितने काल विषै जो नरक गति विष जीवनि का जो परिमाण कह्या, तितने सर्व जीव पाइए, तो लोभ कषाय के काल का समयनि का जो परिमाण होइ है. तितने काल विर्षे केते जीव पाइए ? असे त्रैराशिक कीएं, प्रमाणराशि सर्वकषायनि का काल, फलराशि सर्व नारकराशि, इच्छाराशि लोभकषाय का काल तहां प्रमाणराशि का भाग फलराशि को देइ, इच्छाराशि करि गुण जो लब्धराशि का परिमाण आवै, तितने जीव लोभकषाय वाले नरक गति विषै जानने । बहुरि असे ही प्रमाणराशि, फलराशि, पूर्वोक्त इच्छारांशि मायादि कषायनि का काल कीए, लब्धराशि मात्र अनुक्रमतें मायावाले, मानवाले, क्रोधवाले जीवनि का परिमाण नरक गति विर्ष जानना।
__ इहां दृष्टांत -- जैसे लोभ का काल का प्रमाण एक (१), माया का च्यारि (४), मान का सोलह (१६), क्रोध का चौसठ (६४) सब का जोड दीए पिच्यासी भए । नारकी जीवनि का परिमाण सतरा सै ( १७०० ), ताहि पिच्यासी का भाग दीएं, पाए बीस (२०), ताको एक करि गुणें बीस (२०)हुवा, सो लोभ कषायवालों का परिमाण है । च्यारि करि गुण असी (८०) भए सो मायावालों का परिमाण है। सोला करि गुणे तीन सौ बीस (३२०) हुवा सो, मानवालों का परिमाण है चौसठि करि गुण बार सै असी (१२८०) भए सो, क्रोधवालों का परिमारण है; असे दृष्टांत करि यथोक्त नरक गति विष जीव कहे। अस ही देव गति विर्ष जेता जीवनि का परिमाण है, ताहि सर्व कषायनि के काल का जोड्या हूवा समयनि का परिमाण का भाग दीए, जो परिमारण आवै, ताहि अनुक्रमते क्रोध, मान, माया, लोभ का काल का परिमारण करि गुणे, अनुक्रमतै क्रोधवाले, मानवाले, मायावाले, लोभवाले जीवनि का परिमाण देव गति विष जानना।
रणरतिरिय लोह-माया कोहो माणो बिइंदियादिव्व । प्रावलिअसंखभज्जा, सगकालं वा समासेज्ज ॥२६॥ नरतिरश्चोः लोभमायाक्रोधो मानो द्वींद्रियादिवत् ।
आवल्यसंख्यभाज्याः, स्वककालं वा समासाद्य ॥२९८।। टीका - मनुष्य-तिर्यच गति विर्षे लोभ, माया, क्रोध, मानवाले जीवनि की संख्या पूर्व इंद्रिय-मार्गणा का अधिकार विषै जैसे वैद्री, तेद्री, चौइंद्री, पंचेंद्री विर्षे