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________________ ४३२ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा २९७ टीका - नरक गति विष नारकीनि के लोभादि कषायनि का उदय काल अंतर्मुहूर्त मात्र है । तथापि पूर्व-पूर्व कषाय ते पिछले-पिछले कपाय का काल सख्यात गुणा है । अतर्मुहूर्त के भेद घने, तातै हीनाधिक होते भी अतर्मुहर्त ही कहिए । सोई कहिए है - सर्व ते स्तोक अंतर्मुहूर्त प्रमाण लोभ कषाय का काल है । यातै संग्ख्यात गुणा माया कषाय का काल है । यातै संख्यात गुणा मान कषाय का काल है । यात सख्यात गुणा क्रोध कषाय का काल है। बहुरि देव गति विर्षे क्रोधादि कषायनि का काल प्रत्येक अतर्मुहूर्त मात्र है । तथापि उत्तरोत्तर संख्यात गुणा है । सोई कहिए है - स्तोक अंतर्मुहर्त प्रमाण तो क्रोध कषाय का काल है। तातै संख्यात गुणा मान कषाय का काल है। तातै संच्यात गुणा माया कषाय का काल है। तातै संख्यात गुणा लोभ कषाय का काल है। भावार्थ - नरक गति विषै क्रोध कषायरूप परिणति बहुतर हो है । और कपायनिरूप क्रम तै स्तोक रहै है। __देव गति विषै लोभ कषायरूप परिणति बहुतर रहै हैं । और कषायनिरूप क्रम ते स्तोक-स्तोक रहै है। सव्वसमासेणवहिदसगसगरासी पुणो वि संगुणिदे। - सगसगगुणगारोहिं य, सगसगरासीण परिमाणं ॥२६७॥ सर्वसमासेनावहितस्वकस्वकराशौ पुनरपि संगुणिते । स्वकस्वकगुणकारैश्च, स्वकस्वकराशीनां परिमारणम् ॥२९७।। टीका - सर्व च्यार्यो कषायनि का जो काल कह्या, ताके जेते समय होंहि, निनिका समास कहिए, जोड दीएं, जो परिमाण आवै, ताका भाग अपनी-अपनी गति मबंधी जीवनि के प्रमाण को दीएं, जो एक भाग विपै प्रमाण होइ, ताहि अपनाअपना कपाय के काल का समयनि के प्रमाणरूप गुणकार करि गुणै, जो-जो परिमाण होउ, सोई अपना-अपना क्रोधादिक कपाय सयुक्त जीवनि का परिमाण जानना । अपि शब्द ममुच्चय वाचक है; तातै नरक गति वा देव गति विपै असे ही कन्ना । नो दिग्वाइए है -च्यार्यो कपायनि का काल के समयनि का जोड दीएं,
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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