SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२६ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया २६५ अगले स्थान तीन विशुद्धता को लीए है, तहा किसी ही आयु का बंध न हो है, सो तहां शून्य लिखना। सुण्णं दुगइगिठाणे, जलम्हि सुण्णं असंखभजिदकमा । चउ-चोदस-वीसपदा, असंखलोगा हु पत्तेयं ॥२६॥ शून्यं द्विकैकस्थाने, जले शून्यमसंख्यभजितक्रमाः। चतुश्चतुर्दविंशतिपदा असंख्यलोका हि प्रत्येकम् ।।२९५।। टीका - बहुरि तिस ही धूलि रेखा समान शक्तिस्थान विर्ष केई स्थान पद्म, शुक्ल दोय लेश्या सबधी है । केई स्थान एक शुक्ल लेश्या संबंधी है । सो इनि दोऊ ही जायगा किसी ही आयु का बंध नाही; सो दोऊ जायगा शून्य लिखना । बहुरि तातै अनंतगुणी बधती विशुद्धता लीएं जल रेखा समान शक्तिस्थान के सर्व स्थान केवल शुक्ल लेश्या संबंधी है । तिनि विर्षे किसी ही आयु का बंध नाही हो है । सो तहां शून्य लिखना । जाते अति तीव्र विशुद्धता आयु के बंध का कारण नाही हैं; असे कषायनि के शक्तिस्थान च्यारि कहे । अर लेश्या स्थान चौदह कहे । अर प्रायु के बधने के वा न बंधने के स्थान बीस कहे । ते सर्व ही स्थान असंख्यात लोक प्रमाण असंख्यात लोक प्रमाण, असख्यात लोक प्रमाण जानने । परन्तु उत्कृष्ट स्थान ते लगाइ जघन्य स्थान पर्यत असंख्यात गुणे घाटि जानने । असख्यात के भेद घने है । तातै सामान्यपने सर्व ही असख्यात लोक प्रमाण कहे । सोई कहिए है - सर्व कषायनि के उदयस्थान असंख्यातलोक प्रमाण है। तिनिकौ यथा योग्य असरूयात लोक का भाग दीजिए, तिनिविषै एक भाग बिना अवशेष बहुभाग प्रमाण शिला भेद समान उत्कृष्ट शक्ति संबंधी उदय स्थान है । ते भी असख्यात लोक प्रमाण बहुरि जो वह एक भाग अवशेष रह्या, ताकौ असंख्यात लोक का भाग दीए एक भाग बिना अवशेष बहुभाग प्रमाण पृथ्वी भेद समान अनुत्कृष्ट शक्ति संबंधी उदयस्थान है । ते भी असख्यात लोक प्रमाण है । बहुरि जो एक भाग अवशेष रह्या, ताको असख्यात लोक का भाग दीए, एक का भाग बिना अवशेष भाग प्रमाण धूलि रेखा समान अजघन्य शक्तिस्थान सबधी उदयस्थान है। ते भी असख्यात लोक प्रमाण है । वहुरि अवशेष एक भाग रह्या, तीहि प्रमाण जल रेखा समान जघन्य शक्ति संबधी उदय स्थान है, ते भी असंख्यात लोक प्रमाण है।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy