________________
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषा टीका ]
[ ४२५
लीएं है । तिनिविषै एक नरकायु ही बधै है, सो इहां एक का अक लिखना । बहुरि ताते अनंतगुरण घटता सल्केश लीए पृथ्वी भेद समान कषाय विषं के जे कृष्णलेश्या के स्थान है वा कृष्ण वा नील दोय लेश्या के जे स्थान हैं, तिनिविषै एक नरक प्रायु ही बध है । सो तिनि दोय स्थाननि विषे एक-एक का अक लिखना । बहुरि तिस ही विष के अगले स्थान कृष्ण, नील, कपोत तीन लेश्या के है, सो तिनिविषै केई स्थाननि विषै तो एक नरकायु ही का बंध हो है । बहुरि केई अगले स्थाननि विषे नरक वा तिर्यच दोय आयु बधै है । बहुरि कई अगले स्थाननि विषै नरक, तिर्यच मनुष्य तीन प्रयु बंधे है । सो तीन लेश्या के स्थान विषै एक, दोय, तीन का अंक लिखना । बहुरि तिस ही पृथ्वी के भेद समान शक्तिस्थान विषे केई कृष्ण नील, कपोत, पीत इनि च्यारि लेश्या के स्थान है । केइक कृष्णादि पद्म लेश्या पर्यंत पच के स्थान है | इक कृष्णादिक शुक्ल लेश्या पर्यत षट्लेश्या के स्थान है । सो इन तीनू ही जायगा नरक, तियंच, मनुष्य, देव सबंधी च्यार्यो ही आयु बधै है, सो तीनों जायगा च्यारि च्यारि का अंक लिखना ।
धूलिगछक्कट्ठाणे, चउराऊतिगदुगं च उवरिल्लं । परणचदुठाणे देवं देवं सुण्णं च तिट्ठाणे ॥ २६४॥
धूलिगषट्कस्थाने, चतुराय षि त्रिकद्विकं चोपरितनम् । पंचचतुर्थस्थाने देवं देवं शून्यं च तृतीयस्थाने ॥ २९४ ॥
टीका - बहुरि पूर्वोक्त स्थान ते अनंतानंतगुणा घाटि संक्लेश लीए धूलि रेखा समान शक्तिस्थान विषे केई कृष्णादि शुक्ललेश्या पर्यंत षटलेश्या के स्थान है । तिनि विषे केई स्थाननि विषै तौ नरकादिक च्यार्यो आयु बंधे है । केई अगले स्थाननि विषे नरकायु बिना तीन आयु ही बंध है । केई अगले स्थाननि विषै मनुष्य, देव दोय ही आयु बंधे है । सो तहां च्यारि, तीन, दोय के अंक लिखने । बहुरि तिस ही धूलि रेखा समान शक्तिस्थान विषै केई कृष्ण लेश्या बिना पच लेश्या के स्थान केई कृष्ण नील बिना च्यारि लेश्या के स्थान है । इनि दोऊ जायगा एक देवायु ही बंधै है । सो दोऊ जायगा एक-एक का अंक लिखना । बहुरि तिस ही ि समान शक्तिस्थान विषै केई पीतादि तीन शुभलेश्या संबंधी स्थान है । तिनिविप के स्थाननि विषे ती एक देवायु ही वध है, तहा एक का अक लिखना | बहुरि केई
1