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[ गोम्मटसार जौवकाण्ड गाथा २८६
बहुरि जैसे काठ थोरा काल बिना नमावने योग्य न होड, तैसे थोरा काल बिना जो विनयरूप नमन कौ प्राप्त न होइ । असा जो जघन्य शक्ति लीएं मान, सो जीव को मनुष्य गति विषै उप जावै है |
बहुरि जैसे बैत की लकडी बहुत थोरे काल बिना नमावने योग्य न होइ, तैसे बहुत थोरा काल बिना जो विनयरूप नमन को प्राप्त न होइ । असा जो जघन्य शक्ति लीएं मान, सो जीव कौ देव गति विषे उपजावै है । इहां भी पूर्वोक्त प्रकार प्रकृति बंध होना वा उपमा, उपमेय का समानपना जानना ।
वेणवमलोरम्भ-सिंगे गोमत्त य खोरप्पे ।
सरिसी माया णार - तिरिय गरामर गईसु खिवदि जियं ॥ २८६ ॥ वेणूपमूलोरभ्रकशृंगे गोमूत्रेण च क्षुरप्रेण ।
सदृशी माया नारकतिर्यग्नरामरगतिषु क्षिपति जीवम् ॥ २८६ ॥ टीका - वेणूयमूल, उरभ्रकशृंग, गोमूत्र, क्षुर समान माया ठिगनेरूप परिणति, सो क्रम ते नारक, तियंच, मनुष्य, देव गति विषे जीव को उपजावै है । सोई कहिए हैं -
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जैसे वेणूयमूल, जो बांस की जड की गांठ सो बहुत घने काल बिना सरल न होइ, तैसे बहुत घने काल बिना जो सरल न होइ औसा जो उत्कृष्ट शक्ति कौ ली माया, सो जीव को नरक गति विषे उपजावै है ।
बहुरि जैसें उरभ्रक रंग, जो मीढे का सीग, सो घने काल बिना सरल न सा जो अनुत्कृष्ट शक्ति लीएं माया,
होइ, तैसे घने काल बिना जो सरल न होइ, सो जीव कौ तिर्यच गति विषै उपजावै है ।
बहुरि जैसे गोमूत्र, जो गायमूत्र की धारा, सो थोरा काल बिना सरल न होइ, तैसे थोरा काल बिना सरल न होइ औसी अजघन्य शक्ति लीएं माया, सो जीव कौ मनुष्य गति विषे उपजा है ।
बहुरि जैसे खुर, जो पृथ्वी ऊपरि वृषभादिक का खोज, सो बहुत थोरा काल बिना सरल न होइ, तैसे बहुत थोरा काला बिना जो सरल न होइ, सी जो जघन्य शक्ति लीए माया, सो जीव को देव गति विषै उपजावै है । इहां भी पूर्वोक्त प्रकार प्रकृति बन्ध होना वा उपमा उपमेय का समानपना जानना ।
१ - पटुखडागम - धवला पुस्तक १, पू ३५२ गाथा स १७६ ।