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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका)
। ४१५ भावार्थ - जैसे किसी का किंकर पालती सो खेत विष बोया हूवा बीज, जैसे बहुत फल कौं प्राप्त होइ वा बहुत सीव पर्यंत होइ, तैसै हलादिक ते धरती का फाडना इत्यादिक कृषिकर्म को करै है।
तैसें संसारी जीव का किंकर क्रोधादि कषाय नामा पालती, सो प्रकृति, प्रदेश, स्थिति, अनुभाग रूप कर्म का बंध, सो ही भया खेत, तीहि विष मिथ्यात्वादिक परिणाम रूप बीज, जैसे कालादिक की सामग्री पाइ, अनेक प्रकार सुख-दुःख रूप बहुत फल को प्राप्त होइ वा अनंत संसार पर्यत फल को प्राप्त होइ । तैसे कार्य को कर, तातै इन क्रोधादिकनि का कषाय असा नाम कह्या, 'कृषि विलेखने' इस धातु का अर्थ करि कषाय शब्द का निरुक्तिपूर्वक निरूपण आचार्य करि कीया है ।
सम्मत्तदेससयलचरित्तजहक्खाद-चरणपरिणामे । घादंति वा कषाया, चउसोलअसंखलोगमिदा ॥२३॥ सम्यक्त्वदेशसकलचरित्रयथाख्यातचरणपरिणामान् । घातयंति वा कषायाः, चतुः षोडशासंख्यलोकमिताः॥२३॥
टीका- अथवा 'कषंतीति कषायाः' जे हत, घात करे, तिनिकी कषाय कहिए। सो ए क्रोधादिक है, ते सम्यक्त्व वा देश चारित्र वा यथाख्यात चारित्र रूप आत्मा के विशुद्ध परिणामनि कौं घाते है । तातै इनिका कषाय असा नाम है । यहु कषाय शब्द का दूसरा अर्थ अपेक्षा लक्षण कह्या।
तहां अनंतानुबधी क्रोधादिक है, तो तत्त्वार्थ श्रद्धानरूप सम्यक्त्व को घाते है, जाते अनंत ससार का कारण मिथ्यात्व वा अनत संसार अवस्थारूप काल, ताहि अनुबंध्नति कहिए सबधरूप करै; तिनको अनतानुबंधी कहिए ।
___ बहुरि अप्रत्याख्यानावरण क्रोधादिक कहे, ते अणुव्रतरूप देश चारित्र को घात है, जाते अप्रत्याख्यान कहिए ईषत् प्रत्याख्यान किंचित् त्यागरूप अणुव्रत, ताकी आवृण्वंति कहिए आवरे, नष्ट कर; ताको अप्रत्याख्यानावरण कहिए ।
बहुरि प्रत्याख्यानावरण क्रोधादिक है, ते महाव्रतरूप सकल चारित्र की घातै है; जातै प्रत्याख्यान कहिए सकल त्यागरूप महाव्रत, ताको आवृण्वंति कहिए आवरे, नष्ट करें, ताको प्रत्याख्यानावरण कहिए ।