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________________ You 1 [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा २७३-२७४ अनर्थ वेद के उदय तै भया सम्मोह तै हो है । ताते ज्ञानी जीव कौं परमागम भावना का बल करि यथार्थ स्वरूपानुभवन आदि भाव ते ब्रह्मचर्य अंगीकार करना योग्य है; सा आचार्य का अभिप्राय है । पुरगुरणभोगे सेदे, करेदि लोयस्मि पुरुगुणं कम्मं । पुरु उत्तमे य जह्मा, तह्मा सो वणिश्रो पुरिसो' ॥२७३॥ पुरुगुरणभोगे शेते, करोति लोके पुरुगुणं कर्म । पुरूत्तमे च यस्मात् तस्मात् स वर्णितः पुरुषः || २७३॥ टीका - जाते जो जीव पुरुगुण जो उत्कृष्ट सम्यग्ज्ञानादिक, तीहि विषे शेते कहिए स्वामी होइ प्रवर्ते । बहुरि पुरुभोग जो उत्कृष्ट इंद्रादिक का भोग, तीहि विषै शेते कहिए भोक्ता होय प्रवर्ते । बहुरि पुरुगुरण कर्म जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्षरूप पुरुषार्थ, तीहिने शेते कहिए करै । बहुरि पुरु जो उत्तम परमेष्ठी का पद तीहिं विषै शेते कहिए तिष्ठे । ताते सो द्रव्य भाव लक्षण सयुक्त द्रव्य भाव तै पुरुष का है । पुरुष शब्द की निरुक्ति करि वर्णन किया है । - 1 धातुनि के अनेक अर्थ है । ताते शीङ स्वप्ने इस धातु का स्वामी होना, भोगवना, करना, तिष्ठना से अर्थ कहे, विरोध न उपजावै है । बहुरि इहा पृषोदर शब्द की ज्यो अक्षर विपर्यास जानने । तालवी, शकार का, मूर्धनी षकार करना । अथवा 'षोऽतकरिग' इस धातु तै निपज्या पुरुष शब्द जानना । छादयदि सयं दोसे, णयदो छांददि परं वि दोसेण । छादणसीला जह्मा, तह्मा सा वण्णिया इत्थी ॥ २७४ ॥ छादयति स्वकं दोषैः नयतः छादयति परमपि दोषेण । छादनशीला यस्मात् तस्मात् सा वरिता स्त्री ॥ २७४ ॥ १ पट्खडागम - घवला पुस्तक १, पृष्ठ ३४३, गाथा १७१ । २. षट्खडागम - धवला पुस्तक १, पृष्ठ ३४३, गाथा १७० ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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