________________
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
कौ तिस शरीररूप परिणमाव है । उदय कितना है ? सो कहै है - शरीर ग्रहण का प्रथम समय विषै वंध्या जो समयप्रबद्ध, ताका पहला निषेक उदय हो है। .
इहां प्रश्न - जो गाथा विर्षे समय-समय प्रति एक-एक समयप्रबद्ध का उदय कह्या है । इहां एक निषेक का उदय कैसे कहो हो ?
ताका समाधान - कि निषेक है सो समयप्रबद्ध का एकदेश है । ताको उपचार करि समयप्रबद्ध कहिए है । बहुरि दूसरा समय विर्ष पहिले समय बध्या था जो समयप्रबद्ध, ताका तो दूसरा निषेक अर दूसरे समय बध्या जो समयप्रबद्ध ताका पहिला निषेक, असे दोय निषेक उदय हो है। बहुरि जैसे ही तीसरा आदि समय विर्षे एक-एक बधता निषेक उदय हो है। असै क्रम करि अंत समय विष उदय अर सत्त्वरूप संचय सो युगपत् द्वयर्धगुण हानि करि गुरिणत समयप्रबद्ध प्रमाण हो है । बहुरि आहारक शरीर का तिस शरीर ग्रहण का समय प्रथम ते लगाय अपना अतर्मुहूर्त मात्र स्थिति का अत समय विष किचिदून द्वयर्धगुणहानि करि गुणित समय प्रबद्धप्रमाण द्रव्य का उदय पर सत्त्वरूप संचय सो युगपत् हो है इतना विशेष जानना । इहा समय-समय प्रति बंधै सो समयप्रबद्ध कहिए। तातै समय-समय प्रति समयप्रबद्ध का बंधना तो सभवै अर समयप्रबद्ध का उदय अर किंचिदून द्वयर्धगुणहानिगुणित समयप्रबद्धमात्र सत्त्व कैसे हो है, सो वर्णन इहां ही आगै करेगे।
आगे औदारिक, वैक्रियिक शरीरनि विषे विशेष कहै है
णवरि य दुसरीराणं, गलिदवसेलाउलेत्तहिनिबंधो। गुणहारणीण दिवड्डं, संचयमुदयं च चरिमम्हि ॥२५॥ नवरि च द्विशरीरयोगलितावशेषायुर्मात्रस्थितिबधः ।
गुरणहानीनां द्वयर्थ, संचयमुदयं च चरमे ॥२५५।। टीका - औदारिक, वैक्रियिक शरीरनि का शरीर ग्रहण का प्रथम समय तें लगाइ अपनी स्थिति का अत समय पर्यत बधै है, जे समयप्रवद्ध तिनि का स्थितिबंध गलितावशेष आयुमात्र जानना। जितना अपना आयु प्रमाण होइ, तीहि विष जो व्यतीत भया, सो गलित कहिए । अवशेष रह्या सो गलितावशेप आयु कहिए है; तीहि प्रमाण जानना । सोई कहिए हैं-शरीर ग्रहण का प्रथम समय विषै जो समय