________________
३६०
[ गोम्मटसार जोधकाण गापा २२७ अनूभय भाषा जाननी । असे सत्य असत्य लक्षण रहित आमंत्रणी आदि अनुभय भाषा जाननी । इनि विप सत्य असत्य का निर्णय नाही, सो कारण कहै हैं । जात असे वचननि का सुननेवाला के सामान्यपना करि तौ अर्थ का अवयव प्रगट हवा, तातै असत्य न कही जाइ । वहुरि विशेषपना करि अर्थ का अवयव प्रगट न हवा तातै सत्य भी न कह्या जाय, तातै अनुभय कहिए। जैसे कही 'तू आव' सो इहां सभी सुननेवाला नै सामान्यपनै जान्या कि बुलाया है, परंतु वह आवैगा कि न आवैगा असा विशेष निर्णय तो उस वचन मै नाही। ताते इसको अनुभय कहिए । जैसे सव का जानना। अन्य भी अनुभय वचन के भेद है। तथापि इन भेदनि विर्ष गभित जानने । अथवा असे ही उपलक्षण ते जैसी ही व्यक्त अव्यक्त वस्तु का अंश की जनावनहारी और भी अनुभय भाषा जुदी जाननी।
इहां कोऊ कहैगा कि अनक्षर भाषा का तौ सामान्यपना भी व्यक्त नाही हो है, याको अनुभय वचन कैसे कहिए ?
ताको उत्तर - कि अनक्षर भाषावाले जीवनि का संकेतरूप वचन हो है। तिस तै उनका वचन करि उनके सुख-दुख आदि का अवलबन करि हादिक रूप अभिप्राय जानिएं है। तातै अनक्षर शब्द विष भी सामान्यपना की व्यक्तता संभव है।
अागं ए मन वचन योग के भेद कहे, तिनिका कारण कहै हैंमणवयणाणं मूलणिमित्तं खलु पुण्णदेहउदओ दु । मोसुभयाणं मूलणिमित्तं खलु होदि आवरणं ॥२२७॥
मनोवचनयोर्मूलनिमित्तं खलु पूर्णदेहोदयस्तु ।
मृपोभययोर्मूलनिमित्त खलु भवत्यावरणम् ॥२२७॥ टोका - सत्यमनोयोग वा अनुभयमनोयोग बहुरि सत्यवचनयोग वा अनुभयवचनयोग, इनिका मुख्य कारण पर्याप्त नामा नामकर्म का उदय अर जर्गर नामा नामकर्म का उदय जानना । जातें सामान्य है, सो विशेष विना न हो है । नाने मन वचन का सामान्य ग्रहण हवा, तहां उस ही का विशेष जो है, सत्य पर अनुभव, नाका ब्रहण महज ही सिद्ध भया । अथवा असत्य-उभय का आगे