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________________ ३५६ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा २२२-२२३ टीका - जो सत्य असत्यरूप न होइ औसा पदार्थ विषै वचनप्रवृत्ति कौ कारण जो भाव वचन, तीहि करि जो प्रवर्तनरूप योग होइ, सो सत्य असत्य निर्णय रहित अनुभय वचन योग जानना । ताकां उदाहरण - उत्तर आधा सूत्र करि कहै है । जो वेइंद्रियादिक असैनी पचेद्रिय पर्यत जीवनि के केवल अनक्षररूप भाषा है, सो सर्व अनुभय वचन योग जानना । वा सैनी पंचेद्रिय जीवनि के आगे कहिए है, जो ग्रामत्रणी आदि अक्षररूप भाषा, सो सर्व अनुभय वचन योग जानना । आगे जनपद आदि दस प्रकार सत्य को उदाहरण पूर्वक तीनि गाथानि करि कहै है - जणवदसम्मदिठवरणा, णामे रूवे पडुच्चववहारे । संभावणे य भावे, उवमाए दसविहं सच्चं ॥ २२२ ॥ जनपदसम्मतिस्थापनानाम्नि रूपे प्रतित्यव्यवहारयोः । संभावनायां च भावे, उपमायां दशविधं सत्यम् ॥ २२२ ॥ टीका जनपद विषै, संवृति वा सम्मति विषै, स्थापना रूप विपै, प्रतीत्र्त्य विषे, व्यवहार विषे, संभावना विषे, भांव विषे, दस स्थाननि विषै दस प्रकार सत्य जानना । - भत्तं देवी चंदप्पह, पडिमा तह य होदि जिणदत्तो । सेदो दिग्घो रज्झदि, कूरो त्तिय जं हवे वयरणं ॥ २२३ ॥ टीका विषै, नाम विषै, 10 उपमा विषे जैसे भक्तं देवी चंद्रप्रभप्रतिमा तथा च भवति जिनदत्तः । श्वेतो दीर्घा रध्यते, कूरमिति च यद्भवेद्वचनम् ॥ २२३ ॥ दस प्रकार सत्य कह्या, ताका उदाहरण अनुक्रम ते कहिए है । 1 देशनि विषै, व्यवहारी मनुष्यनि विषे प्रवृत्तिरूप वचन सो जनपद सत्य कहिए। जैसे श्रोदन को महाराष्ट्र देश विषे भातू वा भेटू कहिए । अध्रदेश विषै वटक वा मुकूडु कहिए । कर्णाट देश विषै कूलु कहिए । द्रविड देश विषे चोरु कहिए, इत्यादिक जानना । बहुरि जो संवृति कहिए कल्पना वा सम्मति कहिए बहुत जीवनि करि तैसे ही मानना नवं देशनि विषे समान रूदिरूप नाम, सो संवृति सत्य कहिए वा इस
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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