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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा २२२-२२३
टीका - जो सत्य असत्यरूप न होइ औसा पदार्थ विषै वचनप्रवृत्ति कौ कारण जो भाव वचन, तीहि करि जो प्रवर्तनरूप योग होइ, सो सत्य असत्य निर्णय रहित अनुभय वचन योग जानना । ताकां उदाहरण - उत्तर आधा सूत्र करि कहै है । जो वेइंद्रियादिक असैनी पचेद्रिय पर्यत जीवनि के केवल अनक्षररूप भाषा है, सो सर्व अनुभय वचन योग जानना । वा सैनी पंचेद्रिय जीवनि के आगे कहिए है, जो ग्रामत्रणी आदि अक्षररूप भाषा, सो सर्व अनुभय वचन योग जानना ।
आगे जनपद आदि दस प्रकार सत्य को उदाहरण पूर्वक तीनि गाथानि करि
कहै है
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जणवदसम्मदिठवरणा, णामे रूवे पडुच्चववहारे । संभावणे य भावे, उवमाए दसविहं सच्चं ॥ २२२ ॥
जनपदसम्मतिस्थापनानाम्नि रूपे प्रतित्यव्यवहारयोः ।
संभावनायां च भावे, उपमायां दशविधं सत्यम् ॥ २२२ ॥
टीका जनपद विषै, संवृति वा सम्मति विषै, स्थापना रूप विपै, प्रतीत्र्त्य विषे, व्यवहार विषे, संभावना विषे, भांव विषे, दस स्थाननि विषै दस प्रकार सत्य जानना ।
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भत्तं देवी चंदप्पह, पडिमा तह य होदि जिणदत्तो । सेदो दिग्घो रज्झदि, कूरो त्तिय जं हवे वयरणं ॥ २२३ ॥
टीका
विषै, नाम विषै,
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उपमा विषे जैसे
भक्तं देवी चंद्रप्रभप्रतिमा तथा च भवति जिनदत्तः ।
श्वेतो दीर्घा रध्यते, कूरमिति च यद्भवेद्वचनम् ॥ २२३ ॥
दस प्रकार सत्य कह्या, ताका उदाहरण अनुक्रम ते कहिए है ।
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देशनि विषै, व्यवहारी मनुष्यनि विषे प्रवृत्तिरूप वचन सो जनपद सत्य कहिए। जैसे श्रोदन को महाराष्ट्र देश विषे भातू वा भेटू कहिए । अध्रदेश विषै वटक वा मुकूडु कहिए । कर्णाट देश विषै कूलु कहिए । द्रविड देश विषे चोरु कहिए, इत्यादिक जानना ।
बहुरि जो संवृति कहिए कल्पना वा सम्मति कहिए बहुत जीवनि करि तैसे ही मानना नवं देशनि विषे समान रूदिरूप नाम, सो संवृति सत्य कहिए वा इस