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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भावाटीका ]
[ ३५१ लोक अर इच्छाराशि विर्ष देयराशि दोय, विरलनराशि अग्निकायिकराशि के अर्धच्छेद प्रमाण जानना । तहां लब्धराशि ल्यावने को देय राशि दोय, ताका अर्धच्छेद एक, ताका भाग फलराशि (जो) लोक, ताका अर्धच्छेदरूप प्रमाणराशि विष विरलनराशि है, ताकौं भाग दीएं लोक का अर्धच्छेद मात्र पाए। इनका साध्यभूत अग्निकायिक राशि का अर्धच्छेदरूप जो इच्छाराशि, ताविले विरलनराशि अग्निकायिक राशि के अर्धच्छेद, तिनको भाग दीएं, जो प्रमाण आया, सो किछू घाटि संख्यात पल्य कौं लोक का अर्धच्छेदराशि का भाग दीए, जो प्रमाण होइ तितना यह प्रमाण आया । सो इतने लोक मांडि, परस्पर गुणै, जो असंख्यात लोक मात्र परिमाण भया, सोई लब्धिराशिरूप बादर अग्निकायिकराशि का प्रमाण इहां जानना । इहां किंचिदून संख्यात पल्य प्रमाण लोकनि को परस्पर गुणें, जो महत असंख्यात लोक मात्र परिमाण आया, सो तौ भाज्यराशि जानना । अर लोक का अर्धच्छेद प्रमाण लोकनि को परस्पर गुणै, जो छोटा असंख्यात लोकमात्र परिमाण आया, सो भागहार जानना। भागहार का भाग भाज्य को दीएं, जो प्रमाण होइ, तितना बादर अग्निकायिक जीवनि का प्रमाण जानना। बहुरि इहां अग्निकायिकराशि विषै जो भागहार कह्या, सो अगले अप्रतिष्ठित प्रत्येक आदि राशिनि विर्षे जो भागहार का प्रमाण पूर्वोक्त प्रकार कीएं आवै, तिनि सबनि ते असंख्यात लोक गुणा जानना । जातै सागर में स्यौ जो-जो राशि घटाया, सो-सो क्रमते प्रावली का असंख्यातवां भाग गुणा घाटि । तातै प्रमाणराशि फलराशि पूर्वोक्तवत् स्थापि अर इच्छाराशि विर्षे विरलनराशि अपने-अपने अर्धच्छेद प्रमाण स्थापि, पूर्वोक्त प्रकार त्रैराशि करि अप्रतिष्ठित प्रत्येक आदि राशि भी सामान्यपनै असख्यात लोकमात्र है । तथापि उत्तर उत्तरराशि असंख्यात लोक गुणा जानना। भागहार जहा घटता होइ, तहा राशि बधता होइ, सो इहां भागहार असंख्यात लोक गुणा घटता क्रमतै भया; तातै राशि असंख्यात लोक गुणा भया । इहां असंख्यात लोक वा आवली का असंख्यातवां भाग की संदृष्टि स्थापि अर्थसंदृष्टि का स्थापन है । सो प्रागै सदृष्टि अधिकार विषै लिखेगे। इति प्राचार्य श्रीनेमिचद्र विरचित गोम्मटसार द्वितीय नाम पंचसग्रह ग्रथ की जीवतत्त्व प्रदीपिका नाम सस्कृतटीका के अनुसारि सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका नामा इस भाषा
टीका विषै जीवकांड विष प्ररूपित जे बीस प्ररूपणा, तिनिविपै कायप्ररूपणा नामा आठवा अधिकार सपूर्ण भया ।।८।।