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[ गोम्मटसार जीवफाण्ड गाया २१५
तितने-तितने प्रमाण करि, पूर्वराशि को गुणे, उत्तर राशि का प्रमाण होइ । सो इहां सामान्यपनै गुणकार का प्रमाण सर्वत्र असंख्यात लोकमात्र है । इहा पूर्वोक्त प्रमाण दूवानि को परस्पर गुणै असंख्यात लोक कैसे होइ ? सो इस कथन को प्रकट अकसदृष्टि करिअर अर्थसंदृष्टि करि दिखाइए है । जैसे सोलह दूवानि की परस्पर गुण, पणट्ठी होइ, तौ चौसठि दूवानि को परस्पर गुणै, कितने होइ, से त्रैराशिक करिएं । तहा प्रमाणराशि विषै देयराशि दोय विरलनराशि सोलह, फलराणि पणट्ठी (६५५३६ ) इच्छाराशि विषै देयराशि दोय विरलनराशि चौसठि ।
अव इहा लब्धराशि का प्रमाण ल्यावचे कौ करण सूत्र कहै है । दिण्णच्छेदेणवहिद- इट्ठच्छेदेहि पयदविरलगं भजिदे । लद्धमिदइट्ठरासीणण्णोष्णहदीए होदि पयदधरणं ॥ २१५ ॥ देयच्छेदेनावहितेष्टच्छेदैः प्रकृतविरलनं भाजिते ।
लब्धमितेष्टराश्यन्योन्यहत्या भवति प्रकृतधनम् ॥ २१५ ॥
टीका - देय राशि के अर्धच्छेद का प्रमारण करि, जे फलराशि के अर्धच्छेद प्रमाणराशि विषै विरलनराशि रूप कहे, तिनिका भाग दीएं, जो प्रमाण आवै, तीहि करि इच्छाराशि रूप प्रकृतराशि विषे जो विरलनराशि का प्रमाण कला, ताकी भाग दीएं, जो प्रमाण आवे, तितना जायगा फलराशिरूप जो इष्टराशि, ताको माडि परस्पर गुणै, जो प्रमाण आवं, तितना लव्धराशिरूप प्रकृतिधन का प्रमाण हो है । सो इहा देयराशि दोय, ताका अर्धच्छेद एक, तीहिका जे फलराशि पट्टी के अर्धच्छेद प्रमाणराशि विषै विरलनराशिरूप कहे सोलह, तिनिको भाग दीए, सोलह ही पाए । इनिका साध्यभूत राशि का इच्छाराशि विषै कह्या, जो विरलनराशि चौसठि, ताकौ भाग दीए, च्यारि पाए । सो च्यारि जायगा फलराशिरूप परगट्ठी माडि ६५५३६ । ६५५३६ | ६५५३६ । ६५५३६ । परस्पर गुणै, लब्धराशि एकट्ठी प्रमाण हो है । जैसे ही यथार्थ कथन जानना ।
जो पूर्व गणित कथन विपे लोक के अर्धच्छेदनि का जेता परिमाण कह्या है; तितने दूवे मांड परस्पर गुणै; लोक होइ, तौ इहां अग्निकायिक राशि के अर्धच्छेद प्रमाण दूवे माडि, परस्पर गुरौं कितने लोक होहि ? जैसे त्रैराशिक करि इहां प्रमाणराणि विषै देयराणि दोय, विरलनराणि लोक का अर्धच्छेदराशि, अर फलराशि