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________________ ३४६ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा २१०-२११ जीवनि का प्रमाण जानना। बहुरि इस राशि को भी प्रावली का असख्यातवां भाग का भाग दीए, जो परिमाण आवै, तितना बादर अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पती पर्याप्त जीवनि का प्रमाण जानना । इहां 'रिण' इस आदि अक्षर ते निगोद शब्द करि प्रतिष्ठित प्रत्येक जानने; जातै साधारण का कथन आगै प्रगट कहै है --- विदावलिलोगाणमसंखं संखं च तेउवाऊरणं । पज्जत्ताण पमाणं, तेहि विहीणा अपज्जत्ता ॥२१०॥ वृदावलिलोकानामसंख्यं संख्यं च तेजोवायूनाम् । पर्याप्तानां प्रमाणं, तैविहीना अपर्याप्ताः ॥२१०॥ टीका - पावली के जेते समय है, तिनिका धन कीएं, जो प्रमाण होइ, ताको वृदावली कहिए । ताको असंख्यात का भाग दीएं, जो परिमाण आवै, तितना वादर अग्निकायिक पर्याप्त जीवनि का प्रमाण जानना । बहुरि लोक को सख्यात का भाग दीए, जो परिमारण आवै, तितना वादर वातकायिक पर्याप्त जीवनि का प्रमाण जानना । सूक्ष्म जीवनि का प्रमाण पूर्व कह्या है, तातै इहा बादर ही ग्रहण करने । बहुरि पूर्व जो पृथ्वी, अप, तेज, वायु, प्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतीरूप बादर जीवनि का परिमाण कह्या था, तीहि विर्ष अपना-अपना पर्याप्त जीवनि का परिमाण घटाए, अवशेप रहै, तितने-तितने बादर अपर्याप्त जीव जानने । साहारणबादरेसु, असंखं भागं असंखगा भागा। पुण्णाणमपुण्णाणं, परिमाण होदि अणुकमसो ॥२११॥ साधारणवादरेषु असंख्य भागं संख्यका भागाः । पूर्णानामपूर्णानां, परिमाणं भवत्यनुक्रमशः ॥२११॥ टोका - वादर साधारण वनस्पती का जो परिमाण कह्या था, ताको अमन्यात का भाग दीजिए । तहा एक भाग प्रमाण तो वादर निगोद पर्याप्त जीवनि मग प्रमाग जानना । बहुरि अवशेप असंख्यात वहुभाग प्रमाण वादर निगोद अपर्याप्त डीयान का प्रमाण जानना । जैसै अनुक्रम तै इहां काल की अपेक्षा अल्प-बहुत
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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