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________________ [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया १९७ ३३६ ] वहरि प्रश्न-जो अनतकाल करि भी क्षय न होना साध्य, सो अक्षयानत के हेतु तै दृढ कीया । तातै इहा हेतु के साध्यसमत्व भया ? ताका समाधान-भव्यराशि का अक्षयानंतपना प्राप्त के आगम करि सिद्ध है। ताते साध्यसमत्व का अभाव है। बहुत कहने करि कहा ? सर्व तत्त्वनि का वक्ता पुरुष जो है आप्त, ताकी सिद्धि होते तिस प्राप्त के वचनरूप जो पागम, ताकी सूक्ष्म, अतरित, दूरि पदार्थनि विष प्रमाणता की सिद्धि हो है । तात तिस आगमोक्त पदार्थनि विष मेरा चित्त निस्सदेह रूप है । बहुत वादी होने करि कहा साध्य है ? बहुरि प्राप्त की सिद्धि कैसे ? सो कहिए है 'विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतो मुखः' असा वेद का वचन करि, बहुरि 'प्रणम्य शंभं' इत्यादि नैयायिक वचन करि, बहुरि 'बुद्धो भवेयं' इत्यादि बौद्ध वचन करि, बहुरि मोक्षमार्गस्य नेतारं, इत्यादि जैन वचन करि, बहुरि अन्य अपनाअपना मत का देवता का स्तवनरूप वचननि करि सामान्यपने सर्व मतनि विष प्राप्त मान है । वहुरि विशेषपनै सर्वज्ञ, वीतरागदेव स्याद्वादी ही प्राप्त है । ताका युक्ति करि साधन कीया है । सो विस्तार ते स्याद्वादरूप जैन न्यायशास्त्र विष प्राप्त की सिद्धि जाननी । अस हो निश्चयरूप जहाँ खंडने वाला प्रमाण न संभव है, तातै प्राप्त अर प्राप्त करि प्ररूपित आगम की सिद्धि हो है । तातै प्राप्त आगम करि प्ररूपित ज्यो नोक्षतत्त्व अर वधतत्त्व सो अवश्य प्रमाण करना जैसे आगम प्रमाण ते एक शरीर विप निगोद जीवनि के सिद्ध-राशि तै अनंत गुणापनो सभव है । बहुरि अक्षयानतपना भी नर्व मतवाले नान है । कोऊ ईश्वर विष मान है। कौऊ स्वभा व विषै मान है । तात कह्या हवा कथन प्रमाण है ।। अस्थि अगंता जीवा, जेहिं ण पत्तो तसाण परिणामो। सावकलंकसुपउरा, णिगोदवासं ण मंचंति ॥१६७ ॥ सनि अनंता जीवा, यैर्न प्राप्तस्त्रसानां परिणामः । भावकलंकसुप्रचुरा, निगोदवासं न मंचंति ॥ १९७ ॥ ३ पटानागम बरला पुस्ता १, पृष्ठ २७३, गाथा १४८ पटखण्डागम-धवला पुस्तक ४ पृष्ठ ४७७ me from नब नावाल-कैपउग ति पाठ ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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