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________________ ३३४ ) [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गापा १९६ अंडर जानने । बहुरि आवासनि का दृष्टांत कोशल आदि देश जानने । जैसे भरतक्षेत्र विप कोशल देश आदि अनेक देश पाइए, तैसे अंडर विपै आवास जानने । वहुरि पुलवीनि का दृष्टांत अयोध्यादि नगर जानने। जैसे एक कोणलदेश विपै अयोध्या नगर आदि अनेक नगर पाइए, तैसे आवास विप पुलवी जानने । वहुरि शरीरनि का दृष्टांत अयोध्या के गृहादिक जानने, जैसे अयोध्या विपं मदरादिक पाइए, तैसे पुलवी विष वादर निगोद शरीर जानने । वहुरि वा शब्द करि यह दृप्टात दीया । असे ही और कोऊ उचित दृष्टात जानने । एगणिगोदसरीरे, जीवा दववप्पमाणदो दिट्ठा । सिद्धेहि अणंतगुरणा, सव्वेण वितीदकालेण ॥१६॥ एकनिगोदशरीरे, जीवा द्रव्यप्रमाणतो दृष्टाः । सिद्धरनंतगुणाः सर्वेण व्यतीतकालेन ॥१९६॥ टीका - एक निगोद शरीर विपै वर्तमान निगोद जीव, ते द्रव्यप्रमाण, जो द्रव्य अपेक्षा सख्या, तातै अनंतानंत है; सर्व जीव राशि को अनत का भाग दीजिए, ताम एक भाग प्रमाण सिद्ध हैं । सो अनादिकाल ते जेते सिद्ध भए, तिनितै अनंता गणे है । वहुरि अवशेष वहुभाग प्रमाण मंसारी है । तिनके असख्यात भाग प्रमाण एक निगोद शरीर विप जीव विद्यमान है, ते अक्षयानत प्रमाण है । असे परमागम विर्ष कहिए है। वहुरि तैसे ही अतीतकाल के समान ते अनंत गुण है । इस करि काल अपेक्षा एक शरीर विपे निगोदजीवनि की संख्या कही। बहुरि असे ही क्षेत्र, भाव अपेक्षा तिनकी सख्या आगम अनुसारि जोडिए । तहा क्षेत्र प्रमाण ते सर्व आकाश के प्रदेशनि के अनंतवै भाग वा लोकाकाश के प्रदेशनि ते अनंत गुणे जानने । भाव प्रमाण ते केवल ज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदनि के अनतवै भाग अर नर्वावरि जान गोचर जे भाव, तिनितै अनत गुणे जानने । अस एक निगोद शरीर विप जीवनि का प्रमाण कह्या । १. पद्वन्टागन- अबला पुस्तक १, पृष्ठ २७३, गाया १४७ तथा पृष्ठ ३९६ गाथा २१० तथा धवला पुग्नर ४, पृष्ठ ४७६ गाया ४३.
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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