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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका
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का असंख्यातवा भाग का भाग दीजिये । तामै बहु भाग तौ चौइद्रियनि को दीजिए । अर एक भाग पचेंद्रिय को दीजिए । अँसे दीएं हूवे परिमाण कहै ते नीचे स्थापिए । बहुरि पूर्वे जे बराबरि च्यारि बट किए थे, तिनिको ऊपरि स्थापिए । बहुरि अपनेअपने नीचे ऊपरि के परिमाण कौ मिलाएं, द्वीद्रियादि जीवनि का परिमाण हो है ।
तिबिपचपुण्ण पमारणं, पदरंगुल संखभागहिदपदरं । ही कम पुण्णूरा, बितिचपजीवा पज्जत्ता ॥ १८० ॥
त्रिद्विपंचचतुः पूर्णप्रमाणं, प्रतरांगुला संख्यभागहितप्रतरम् । होनक्रम पूर्णोना, द्वित्रिचतुः पंचजीवा अपर्याप्ताः ॥ १८० ॥
टीका - बहुरि पर्याप्त त्रसजीव प्रतरांगुल का संख्यातवां भाग का भाग जगत्प्रतर को दीएं, जो परिमाण आवै, तितने है, तिनि विषे घने तौ इंद्रिय है । तस्यो घाटि द्वीद्रिय है । तिहिस्यों घाटि पचेद्रिय है । तिहिसौ घाटि चौइद्रिय है, सो इहां भी पूर्वोक्त 'बहुभागे समभागो' इत्यादि सूत्रोक्त प्रकार करि सामान्य पर्याप्त त्रस - राशि को आवली का असंख्यातवां भाग का भाग देइ, एक भाग जुदा राखि अवशेष बहुभागनि के च्यारि समान भाग करि, एक-एक भाग तेद्री, बेद्री, पंचेद्री, चीन को देनां । बहुरि तिस एक भाग कौ भागहार आवली का असंख्यातवां भाग का भाग देइ, एक भाग जुदा राखि, बहुभाग तेइद्रियनि को देना । बहुरि तिस एक भाग की भागहार का भाग देइ, एक भाग जुदा राखि, बहुभाग द्वीद्रियनि को देनां । बहुरि तिस एक भाग कौ भागहार का भाग देव, एक भाग जुढा राखि, बहुभाग पचेद्रियनि दैना । अर एक भाग चौइद्रियनि को देना । जैसे अपना-अपना समभाग ऊपर स्थापि, देय भाग नीचे स्थापि, जोडे, तेद्री, आदि पर्याप्त जीवनि का प्रमाण. हो है । बहुरि पूर्वे जो सामान्यपने बेइद्रिय प्रादि जीवनि का प्रमाण कया था, तामै सौ इहा का जो अपना-अपना पर्याप्त का परिमारग सो घटाय दीए, अपनाअपना बेद्री, आदि पंचेद्री पर्यत अपर्याप्त जीवनि का परिमाण हो है । सो अपर्याप्तनि विषे घने तौ बेइद्रिय, तिहिस्यो घाटि तेइंद्रिय, तिहिसौ घाटि चौइंद्रिय, तिहिसौ घाटि पचेद्रिय है - जैसे इनिका परीमाण कह्या