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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
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श्रागै निर्वृत्तिरूप द्रव्येद्रिय स्पर्शनादिकनि का आकार कह्या, सो कितने-कितने क्षेत्र प्रदेश को रोके - औसा अवगाहना का प्रमारण कहै है '
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गुलअसंखभागं, संखेज्जगुरणं तदो विसेस हियं । तत्तो असंखगुणिदं, अंगुल संखेज्जयं तत्तु ॥ १७२ ॥
अंगुलासंख्यभागं, संख्यातगुणं ततो विशेषाधिकं । ततोऽसंख्यगुरिणत मंगुलसंख्यातं तत्तु ।। १७२ ॥
टीका - घनांगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण आकाश प्रदेशनि कौ चक्षु इन्द्रिय रोके है । सो घनागुल कौ पल्य का असख्यातवा भाग करि तौ गुणीए अर एक अधिक पल्य का असख्यातवां भाग का अर दोय वार सख्यात का अर पल्य का असख्यातवा भाग का भाग दीजिये, जो प्रमाण आवै, तितना चक्षु इन्द्रिय की अव -गाना है । बहुरि याते सख्यातगुणा श्रोत्र इन्द्रिय की अवगाहना है । यहां इस गुणकार करि एक बार संख्यात कै भागहार का अपवर्तन करना । बहुरि याको पल्य का असंख्यातवा भाग का भाग दीए, जो परिमाण श्रावै, तितना उस ही श्रोत्रइद्रिय की अवगाहना विषै मिलाए, घ्राण इन्द्रिय की अवगाहना होइ । सो इहा इस अधिक प्रमाण करि एक अधिक पल्य का असख्यातवा भाग का भागहार अर पल्य का असख्यातवा भाग गुणकार का अपवर्तन करना । बहुरि याकौ पल्य का असख्यातवां भाग करि गए, तब जिह्वा इन्द्रिय की अवगाहना होइ । इस गुरणकार करि पल्य का असख्यातवां भागहार का अपवर्तन करना । ऐसे यहु जिह्वा इन्द्रिय की अवगाहना घनांगुल के सख्यातवे भाग मात्र जानना ।
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आगे स्पर्शन इन्द्रिय के प्रदेशनि को अवगाहना का प्रमाण कहै है सुहमणिगोदअपज्जत्तयस्स जादस्स तदियसमयह्नि । अंगुल असंखभागं, जहण्णसुक्कस्सयं मच्छे ॥ १७३॥
सूक्ष्मनिगोदापर्याप्तकस्य जातस्य तृतीयसमये । अगुलासंख्यभागं, जघन्यसुत्कृष्टकं मत्स्ये ॥ १७३॥
टीका - स्पर्शन इन्द्रिय की जघन्य अवगाहना सूक्ष्म निगोदिया लब्धि श्रपर्याप्तक के उपजने तै तीसरा समय विषे जो जवन्य शरीर का अवगाहना बनागुल के