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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १७१
एकेद्रियादि पचद्रिय जीवनि के स्पर्शनादि इन्द्रियनि के उत्कृष्ट विपय ज्ञान का यत्र
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इद्रियनि के नाम | एकेंद्रिय | द्वीद्रिय | श्रीद्रिय
चतुरिंद्रिय
प्रसज्ञी पचेद्रिय
सजी पचेंद्रिय
धनुप
धनुप |
धनुप |
धनुष | योजन
धनुप | योजन
योजन
स्पर्शन
१६००
३२००
६४००
घ्राण
चक्षु
.७ प्रमाण
|४७२६३१२० योजन
५६०८
थोत्र
८०००
प्रागै इन्द्रियनि का आकार कहै है
चक्खू सोदं धारणं, जिन्भायारं मसूरजवणाती। अतिमुत्तखुरप्पसम, फासं तु अणेयसंठाणं ॥१७१॥ चक्षुःश्रोत्रघ्राणजिह्वाकारं मसूरयवनाल्यः ।
अतिमुक्तक्षुरप्रसम, स्पर्शनं तु अनेकसंस्थानम् ॥१७१॥ टोका - चक्षु इंद्री ती मसूर की दालि का आकार है। वहरि श्रोत्र इन्द्री जब की जो नाली, तीहिके आकार है । बहुरि घ्राण इन्द्रिय अतिमुक्तक जो कदब का फल, ताके आकार है। वहुरि जिह्वा इन्द्रिय खुरपा के आकार है। वहरि स्पर्शन इन्द्रिय अनेक आकार है जातै पृथ्वी प्रा. . नेद्री आदि जीवनि का शरीर का प्राकार अनेक प्रर त स्पर्शन
भी प्राकार अनेक प्रकार कद्या, जाते स्पर्शन
* व्य