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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १६९
टीका - एकेद्रिय जीव के स्पर्शन इन्द्रिय के विपय का क्षेत्र, वीस की कृति (वर्ग) च्यारि से धनुप प्रमाण जानना । वहुरि वेइन्द्रियादिक ग्रसनी पचंद्रिय पर्यत के दूरगा-दूणा जानना, सो द्वीद्रिय के आठ से धनुष । त्रीद्रिय के सोला से धनुप । चतुरिंद्रिय के बत्तीस से वनुष । असैनी पंचेद्रिय कें चोसठि से धनुप - स्पर्शन इन्द्रिय का विपय-क्षेत्र जानना । इतना - इतना क्षेत्र पर्यत तिष्ठता जो स्पर्शनरूप विपय ताकी जाने |
बहुरि द्वीद्रिय जीव के रसना इन्द्रिय का विपय क्षेत्र, आठ की कृति चौसठि धनुप प्रमाण जानना । आगे दूणां दूणां, सो तेइन्द्रिय के एक सौ अठाईस धनुप । चतुरिद्रिय के दोय से छप्पन धनुप । असैनी पंचेद्रिय के पाच से वारा धनुप - रसना इंद्रिय का विषयभूत क्षेत्र का परिमाण जानना ।
बहुरि ते इन्द्रिय के धारण इन्द्रिय का विपयभूत क्षेत्र दश की कृति, सौ धनुप प्रमाण जाना । आगे दूरगां दूणां सो, चौइंद्री के दोय से धनुप । सैनी पचेद्रिय के च्यारि सँ धनुप । घ्राण इन्द्रिय का विषयभूत क्षेत्र का प्रमारण जानना ।
वहुरि चौ इन्द्रिय के नेत्र इन्द्रिय का विपय क्षेत्र छियालीस घाटि तीन हजार योजन जानना । यातें दूगां पांच हजार नौ से ग्राठ योजन प्रसैनी पचेद्रिय के नेत्र इन्द्रिय का विपयभूत क्षेत्र जानना । वहुरि असैनी पंचेंद्रिय के श्रोत्र इन्द्रिय का विषय क्षेत्र का परिमाण ग्राठ हजार वनुप प्रमाण जानना ।
सण्णिस्स बार सोदे, तिन्हं णव जोयहखाणि चक्खुस्स । सत्तेतालसहस्सा बेसदतेसट्ठिमदिरेया ॥ १६८ ॥
संजिनो द्वादश श्रोत्रे, त्रयाणां नव योजनानि चक्षुषः । सप्तचारिणत्सहस्राणि द्विगतत्रिषष्ट्यतिरेकारि ॥ १६९ ॥
टीका - सैनी पंचेद्रिय के स्पर्शन, रसना, कारण इनि तीन इन्द्रियनि का नवनव योजन विषय क्षेत्र है । बहुरि नेत्र इन्द्रिय का विषय क्षेत्र सैंतालीस हजार दोय मैं नरेसठि योजन, बहुरि सात योजन का बोसवां भागकर अधिक है । वहुरि श्रोत्र इन्द्रिय का विषयक्षेत्र वारह योजन है ।