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गोमटगार जीवन गाथा १.२.१६३ ३०८]
तत्तो एगारणवसगपणचउरिणयमूलभाजिदा सेढी। पल्लालंखेज्जबिमा, पत्तेयं प्राणदादिसुरा ॥१६२॥ तत एकादशनवसप्तपंचचतुनिजमूलभाजिता श्रेगी।
पल्यासंख्यातकाः, प्रत्येकमानतादिसुराः ॥ १६२ ॥ टीका - वहुरि तहां ते ऊपरि सनत्कुमार-माहेद्र, बहुरि ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, बहुरि लांतव - कापिष्ठ, शुक्र - महाशुक्र, बहुरि शतार - सहस्रार इनि पांत्र युगलनि विर्ष अनुक्रमते जगत्श्रेणी का ग्यारहवां, नवमां, सातवां, पाचवा, चौथा जो वर्गमूल, तिनिका भाग जगत्श्रेणी की दीएं, जितना-जितना परिमाण यावे, तितना-तितना तहां के वासी देवनि का प्रमाण जानना।
__वहुरि ता ऊपरि आनत-प्राणत युगल, बहुरि पारण-अच्युत युगल, बहुरि तीन अधोवेयक, तीन मध्य ग्रंवेयक, तीन उपरिम अवेयक. बहुरि नव अनुदिश विमान, बहुरि सर्वार्थसिद्धि विमान विना च्यारि अनुत्तर विमान इन एक-एक विप देव पल्य के असख्यातवै भाग प्रमाण जानने ।
तिगुणा सत्तगुणा वा, सवठ्ठा माणुसीपमाणादो। सामग्णदेवरासी, जोइसियादो विसेसहिया ॥१६३।। त्रिगुणा सप्तगुणा बा, सर्वार्था मानुपीप्रमाणतः ।
सानान्यदेवराणिः, ज्योतिप्कतो विशेषाधिकः ॥१६३॥ टोका - वहुरि सर्वार्थसिद्धि के वासी अहमिद्र देव, मनुपिणीनि का जो परिगण, पर्याप्त मनुप्यनि का च्यारि भाग मे तीन भाग प्रमाण कह्या था, तातै तिगुणा जानना। बहुरि कोई आचार्य का अभिप्रायले सात गुणा है । बहुरि ज्योतिनी देवनि का परिमाण विष भवनवासी, कल्पवासी, देवनि का प्रमाण करि नाधिक अंसा ज्योतिषी टेवनि के संख्यातवं भाग, जो व्यतर राशि, सो जोड़े, गर्व सामान्य देवनि का परिमाण हो है ।
नि श्री प्राचार्य नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती विरचित गोम्मटसार द्वितीय नाम पंचसग्रह ग्रथ की जीवतन्त्रप्रनीतिका नाम सस्कृतटीका के अनुसारि इस सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामा भाषाटीका विर्षे
नरपिन जे वीस प्ररूपणा, तिनिवि गतिप्ररूपणा नामा छठा अधिकार सपूर्ण भया ॥६॥
१. "गटागम - पवना पुस्तक ३, पृष्ठ १७, गाथा १३ ।