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________________ सम्यग्ज्ञानचन्त्रिका भाषाटीका ] [ ३०७ आगै देवगति के जीवनि की संख्या च्यारि गाथानि करि कहै है - तिण्णिसयजोयणाणं, बेसदछप्पण्णअंगुलाणं च । कदिहदपदरं वेंतर, जोइसियाणं च परिमाणं ॥१६०॥ त्रिशतयोजनानां, द्विशतषट्पंचाशदंगुलानां च । कृतिहतप्रतरं व्यंतरज्योतिष्काणां च परिमाणम् ॥१६०॥ टीका - तीन सै योजन के वर्ग का भाग जगत्प्रतर को दीएं, जो परिमाण होइ, तितना व्यंतरनि का प्रमाण जानना। तीन सै योजन लंबा, तीन सै योजन चौडा, एक प्रदेश ऊंचा ऐसा क्षेत्र का जितने आकाश का प्रदेश होइ, ताका भाग दीजिए, सो याका प्रतरागुल कीए, पैसठि हजार पांच से छत्तीस को इक्यासी हजार कोडि गुणा करिए इतने प्रतरागुल होइ, तिनिका भाग जगत्प्रतर को दीए व्यतरनि का प्रमाण होइ है। बहुरि दोय सै छप्पन अंगुल के वर्ग का भाग जगत्प्रतर को भाग दीएं, जो परिमाण आवै, तितना ज्योतिषीनि का परिमाण जानना । दोय सै छप्पन अंगुल चौडा इतना ही लम्बा एक प्रदेश ऊंचा, असा क्षेत्र का जितना आकाश का प्रदेश होइ ताका भाग दीजिए, सो याका प्रतरांगुल पैसठि हजार पांच से छत्तीस है । ताका भाग जगत्प्रतर को दीए ज्योतिषी देवनि का परिमाण हो है। घणगुतपढमपदं, तदियपदं सेढिसंगुणं कमसो। भवरणे सोहम्मदुगे, देवारणं होदि परिमारणं ॥१६१॥ घनांगुलप्रथमपदं, तृतीयपदं श्रेरिणसंगुणं क्रमशः । भवने सौधर्मद्विके, देवानां भवति परिमारणम् ॥१६१।। टीका - घनागुल का जो प्रथम वर्गमूल, तिहिने जगत्श्रेणी करि गुण, जो परिमाण होइ, तितने भवनवासीनि का परिमाण जानना । बहुरि घनागुल का जो तृतीय वर्गमूल तिहिने जगत्श्रेणी करि गुण जो परिमाण होइ, तितने सौधर्म अरु ईशान स्वर्ग का वासी देवनि का परिमाण जानना ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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