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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका;
[ २६३ बहुरि इद्रिय मार्गणा विष एकेद्रिय विकलेन्द्रिय का अतर नाही है । पनेद्रिय विर्षे सर्व गुणस्थाननि का सामान्यवत् अंतर है।
बहुरि काय मार्गणा विर्षे पंच स्थावरनि का अंतर नाही है । त्रस विर्षे सर्व गुणस्थाननि का सामान्यवत् अतर है।
बहुरि योग मार्गणा विषै तीनो योगनि विष आदि के तेरह गुणस्थाननि का वा अयोगी का सामान्यवत् अतर है ।
बहुरि वेद मार्गणा विष तीनो वेदनि विष आदि के नव गुणस्थाननि वा अवेदीनि का सामान्यवत् अंतर है। विशेष इतना दोऊ क्षपकनि का उत्कृष्ट अंतर स्त्री-नपुसक वेद विष पृयक्त्व वर्ष मात्र अर पुरुष वेद विषै साधिक वर्ष प्रमाण है। । बहुरि कषाय मार्गणा विष च्यारि कपायनि विर्ष वा अकषायनि विषै अपनेअपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् अंतर है । विशेष इतना - दोय क्षपकनि का उत्कृष्ट अंतर साधिक वर्षमात्र है।
बहुरि ज्ञान मार्गणा विष तीन कुजान, पांच सुजाननि विर्षे अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् अंतर है । विशेष इतना -- अवधि, मन.पर्ययज्ञान विषै क्षपकनि का उत्कृष्ट अतर साधिक वर्षमात्र है।
बहुरि संयम मार्गणा विर्षे सात भेदनि विर्ष अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् अतर है।
बहुरि दर्शन मार्गणी विषै च्यारि भेदनि विष अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् अतर है । विरोप इतना - अवधि दर्शन विषै क्षपकनि का अंतर साधिक वर्षमात्र है।
वहुरि लेश्या मार्गणा विर्ष छहो भेदनि विपै वा अलेश्या विष अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् अतर है ।
बहुरि भव्य मार्गणा विष दोय भेदनि विप अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् अंतर है।
बहुरि सम्यक्त्व मार्गणा विषै छह भेदनि विष अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत अतर है। विशेप इतना - उपशम सम्यक्त्व विपै असयतादिक का जघन्य