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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १४५
अव विशेष करि कहिए है । तहा गति मार्गणा विषै सातो पृथ्वीनि के नारकोनि विषै मिथ्यादृष्ट्यादि च्यारि गुणस्थाननि का सामान्यवत् काल है । तिर्यञ्च गति विषे मिथ्यादृष्ट्यादि पंच गुणस्थाननि विषे सामान्यवत् काल है । मनुप्यगति विषै सासादन का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अतर्मुहूर्त अर मिश्र का जघन्य वा उत्कृप्ट अन्तर्मुहूर्त श्रर अन्य सर्व गुणस्थाननि विषे सामान्यवत् काल है । देवगति वि मिथ्यादृष्ट्यादि च्यारि गुणस्थाननि का सामान्यवत् काल है ।
वहुरि इंद्रिय मार्गणा श्रर काय मार्गरेरणा विषै इंद्रिय-काय अपेक्षा सर्वकाल है । गुणस्थान अपेक्षा एकेद्री, विकलेद्री, अर पंच स्थावरनि विषै मिध्यादृष्टि का सर्वकाल है । अर पंचेद्रिय वा त्रस विषे सर्व गुणस्थाननि का सामान्यवत् काल है ।
वहरि योग मार्गणा विषे तीनों योगनि मिथ्यादृष्ट्यादि सयोगी पर्यन्तनि का अर अयोगी का सामान्यवत् काल है । विशेष इतना मिश्र का जघन्य काल एक समय ही है । र क्षपकनि का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त मात्र काल है ।
बहुरि वेद मार्गणा विषे तीन वेदनि विषे अर वेदरहित विपं मिथ्यादृष्ट्यादि ग्रनिवृत्तिकरण पर्यन्तनि का वा ( ऊपरि) सामान्यवत् काल है ।
बहुरि कपाय मार्गगा विपै च्यारि कषायनि विषे मिथ्यादृष्ट्यादि श्रप्रमत्त पर्यंतनिका मनोयोगीवत् अर दोय उपशमक वा क्षपक पर केवल लोभयुत सूक्ष्मसांपगय श्रर कपाय, इनिका सामान्यवत् काल है ।
बहुरि ज्ञान मार्गणा विषै तीन कुज्ञान, पांच मुज्ञाननि विषे अपने-अपने गुरणस्थाननि का मामान्यवत् काल है ।
बहुरि संयम मार्गणा विपै सात भेदनि विपे अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् काल है |
बहरि दर्शन मार्गणा विषे च्यारि भेदनि विपे अपने-अपने स्थाननि का सामान्यवत् काल है ।
बहुरि लेश्या रहिननि विषे अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् काल है। बहुरि भव्य मार्गगा विषे दोऊ भेदनि विपे अपने-अपने गुणस्थाननि का
सामान्य कान है।