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________________ १७४ ] [ गोमरी गाया १२६ काल का एक क्षुद्रभव होड, तौ छत्तीस सी पिच्यामी अर एक का विभाग प्रमाण उसासनि का कितना क्षुद्रभव होइ ? इहां प्रमाण राशि १ . फलराणि १, इच्छाराणि ૩૬ १८ यथोक्त करते लव्य राणि छ्यासठ हजार तीन सौ छत्तीस ( ६६३३६) क्षुद्रभवनि का परिमाण आया । वहुरि जो छ्यासठि हजार तीन सौ छत्तीस क्षुद्रभवनि का काल छत्तीस सौ पिच्यासी अर एक का त्रिभाग इतना उस्वास होड, ती एक क्षुद्रभवनि का कितना कालहोइ? इहां प्रमाण राशि ६६३३६, फल राणि ३६८५ १, इच्छा राशि e १, यथोक्त करतां लव्ध राशि एक सांग का अठारहवां भाग ? एक क्षुद्रभव का काल १८ भया । बहुरि छत्तीस सौ पिच्यासी अर एक का त्रिभाग ३६८५ इतना सांस का ३ छ्यासठि हजार तीन सौ छत्तीस क्षुद्रभव होंड, तो सांस का अठारहवां भाग का कितना क्षुद्रभव होइ ? इहां प्रमाण राशि ६३८५१, फल राशि६६३३६, इच्छा राणि एक का 2 अठारहवां भाग १_,यथोक्त करतां लव्ध राशि १ क्षुद्रभव हुआ । इहां सर्व फल राशि ३ १८ की इच्छा राशि करि गुग्गना, प्रमाण राशि का भाग देना, तव लव्ध राशि प्रमाण हो है | जैसे एक क्षुब्र्भव का काल समस्त क्षुद्रभव, समस्त क्षुद्रभव का काल इनिक क्रम तै प्रमाण राशि करते तें च्यारि प्रकार त्रैराशिक किया है । और भी जायगा जहां त्रैराशिक का वर्णन होड, तहां में ही यथासंभव जानना । या समुद्घातकेवली के अपर्याप्तपन का संभव है हैं - - पज्जत्तसरीरस्स य, पज्जत्तुदयस्स कायजोगस्स । जोगिस्स अपुण्णत्तं, अपुण्णजोगोत्ति रिपट्ठि ॥ १२६॥ पर्याप्तशरीरस्य च, पर्याप्त्युदयस्य काययोगस्य । योगिनोऽपूर्णत्वमपूर्णयोगः इति निर्दिष्टम् ।।१२६॥ टीका - संपूर्ण परन श्रद्वारिक शरीर जाऊँ पाइए, बहुरि पर्याप्ति नामा नानकर्म का उदय करि संयुक्त, बहुरि काययोग का वारी - जैसा जो सयोगकेवली नट्टारक, नाके समुद्घात करते कपाट का करिया विषै अर संहार विर्षे पूर्ण काययोग कृत्या हुँ । जाने तहां संज्ञी पर्याप्तवत् पर्यानिनि का आरंभ करि क्रम तं निष्ठा
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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