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[ गोम्मटमार जीवकाण्ड गाथा ११७
सूच्यगुल, ४ प्रतरागुल, ५ घनांगुल, ६ जगत श्रेणी, ७ जगत्प्रतर ८ जगद्धन । तहां पन्य तीन प्रकार है - व्यवहार पल्य, उद्धार पल्य, श्रद्धा पल्य । तहा पहिला पल्य करि वालनि की संख्या कहिए है । दूसरा करि द्वीप - समुद्रनि की संख्या गए है । तीसरा करि कर्मनि की वा देवादिकनि की स्थिति वर्णित है । अव परिभाषा का कथनपूर्वक तिनि पल्यनि का स्वरूप कहिए है ।
जो तीक्ष्ण शस्त्रनि करि भी छेदने भेदने मोडने को समर्थ न हूजे औसा है, वहुरि जल-ग्रग्नि ग्रादिनि करि नाश को न प्राप्त हो है, बहुरि एक-एक तो रस, वर्ण, गंध ग्रर दोय स्पर्श असे पाच गुरण संयुक्त है; वहुरि शब्दरूप स्कंध का कारण है, ग्राप शब्द रहित है, बहुरि स्कंध रहित भया है, वहुरि आदि-मध्य-अंत जाका का न जाड जैसा है; बहुरि बहु प्रदेशनि के प्रभाव ते अप्रदेशी है, बहुरि इंद्रियनि करि जानने योग्य नही है, वहुरि जाका विभाग न होइ जैसा है - जैसा जो द्रव्य, सो परमाणु कहिए । सो परमाणु अंतरंग वहिरंग कारणानि ते अपने वर्ण, रस, गंध, स्पर्शनि करि सदा काल पूरे कहिए जुडै र गलै कहिए विखरं तव स्कंधवान आपको करें है; ताते पुद्गल जैसा नाम है ।
वहुरि तिनि अनंतानंत परमाणुनि करि जो स्कंध होइ, सो अवसन्नासन्न नाम धारक है । बहुरि तातै सन्नासन्न, तृटरेणु, त्रसरेणु, उत्तम भोगभूमिवाली का बाल वा अग्रभाग, रथरेणु, मध्यम भोगभूमिवालों का वाल का अग्रभाग, जघन्य भोगभूमिवाली का बाल का अग्रभाग, कर्मभूमिवालों का बाल का अग्रभाग, लीख, सरिसौ, यद अंगुल ए बारह पहिला पहिला ते क्रम करि आठ-आठ गुणे है ।
नहां अंगुल तीन प्रकार है उत्सेधागुल, प्रमारणागुल, प्रात्मांगुल । तहां पूर्वोक्त क्रम राच्या मोउत्गुल है । याकरि नारकी, तिर्यच, मनुष्य, देवनि के शरीर वा भवानी श्रादि च्यारि प्रकार देवनि के नगर पर मंदिर इत्यादिकनि का प्रमाण कोन करिए है । बहुरि तिन उत्सेबागुल ते पाच मो गुणा जो भरत क्षेत्र का प्रवसती रात तिर्थ पहला चक्रवर्ती का अंगुल है; मोई प्रमाणागुल है । याकरि द्वीप, स्वयं बेदी, नदी, कुंड, जगती, वर्ष इत्यादिकनि का प्रमाण वरिगए है ।
भरावन क्षेत्र के मनुष्यनि का अपने-अपने वर्तमान काल विपे जो अगुल मगर है । याकरि नारी, कलश, धारमा, धनुष, ढोल, जूडा, शय्या, गाडा, सिंहासन, वाण, चमर, दुदुभि, पीठ, छत्र, मनुष्यनि के मंदिर