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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
[ २३३ रहित बिदीनि के स्थापन का अनुक्रम, सो अनादिनिधन ऋषि प्रणीत आगम विर्षे कह्या है । ऐसें जीवसमासनि की अवगाहना कहि ।
अब तिनके कुल की संख्या का जो विशेष, ताको गाथा च्यारि करि कहै है - बावीस सत्त तिण्णि य, सत्त य कुलकोडिसयसहस्साई। गया पुढविहगागरिण, वाउक्कायाण परिसंखा ॥११३॥
द्वाविंशतिः सप्त त्रीणि, च सप्त च कुलकोटिशतसहस्राणि । .
ज्ञेया पृथिवीदकाग्निवायुकायिकानां परिसंख्या ॥११३॥ टीका - पृथ्वी कायिकनि के कुल बाईस लाख कोडि है । अप् कायिकनि के कुल सात लाख कोडि है। तेज कायिकनि के कुल तीन लाख कोडि है। वायु कायिकनि के कुल सात लाख कोडि है; असे जानना ।
कोडिसयसहस्साइं, सत्तट्ठणव य अट्ठवीसाइं। बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियहरिदकायारणं.॥११४॥
कोटिशतसहस्राणि, सप्ताष्ट नव च अष्टाविंशतिः ।
द्वोद्रियत्रींद्रियचतुरिंद्रियहरितकायानाम् ॥११४॥ टीका - बेद्रिय के कुल सात लाख कोडि है। त्रीद्रियनि के कुल आठ लाख कोडि है । चतुरिद्रियनि के कुल नव लाख कोडि है। वनस्पति कायिकनि के कूल अठाईस लाख कोडि है।
अद्धत्तेरस बारस, दसयं कुलकोडिसदसहस्साई। जलचर-पक्खि-चउप्पय-उरपरिसप्पेसु णव होति ॥११॥ श्रर्धत्रयोदश द्वादश, दशकं कुलकोटिशतसहस्राणि ।
जलचरपक्षिचतुष्पदोरुपरिसर्येषु नव भवंति ॥११५॥ टीका - पंचेद्रिय विर्ष जलचरनि के कुल साडा बारा लाख कोडि है। पक्षीनि के कुल बारा लाख कोडि है । चौपदनि के कुल दश लाख कोडि है । उरसर्प जे सरीसृप आदि, तिनिके कुल नव लाख कोडि है ।