________________
२३२ ]
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ११२ पर्यन्त दोय स्थान है, तिनिकी च्यारि विदी लिखनी । बहुरि इस ही प्रकार आगे इस एक ही पंक्ति विषे सूक्ष्म पर्याप्त वायु, तेज, अप्, पृथ्वी, बहुरि बादर पर्याप्त वायु, तेज, पृथ्वी, अप्, निगोद, प्रतिष्ठित प्रत्येक इनिका अपना-अपना जघन्य अवगाहना स्थान कौं आदि देकर अपना-अपना उत्कृप्ट अवगाहना स्थान पर्यन्त दोय - दोय स्थाननि की च्यारि-च्यारि विदी लिखनी । वहुरि अँसें ही प्रतिष्ठित प्रत्येक का उत्कृष्ट श्रवगाहन स्थान ते आगे तिस ही पक्ति विपं प्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्त का जघन्य अवगाहना स्थान तै लग इ उत्कृष्ट अवगाहना स्थान पर्यन्त तेरह स्थान हैं । तिनिकी छब्बीस विदी लिखनी । जैसे इस एक ही पंक्ति विपं विदी लिखनी कही । तहां पर्याप्त सूक्ष्म निगोद का आदि स्थान सतरहवा है, ताते इनिके दोय स्थाननि की सोलहवां स्थान की दोय विदीनि का नोचा कौ छोडि सतरहवां अठारहवां स्थान की च्यारि विदी लिखनी । वहुरि सूक्ष्म पर्याप्त का आदि स्थान वीसवां है । ताते तिस ही पक्ति विषे उगणीसवां स्थान की दोय विदी का नीचा कौ छोडि वीसवां, इकईसवां दीय स्थाननि की च्यारि विदी लिखनी । जैसे ही वीचि वीचि एक स्थान की दोयदोय विदी का नीचा कौ छोडि छोडि सूक्ष्म पर्याप्त तेज श्रादिक के दोय-दोय स्थाननि की च्यारि च्यारि विदी लिखनी । वहुरि तिस ही पंक्ति विपे अप्रतिष्ठित प्रत्येक के पचासवा तै लगाइ स्थान है, तातै पचासवा स्थानक की विदीनि त लगाइ रह स्थाननि की छबीस विदी लिखनी, असे एक-एक पक्ति विषै कहे । वहुरि तिस पक्ति के नीचे-नीचे अठारमी, उगणीसमी, बीसमी, इकवीसमी पक्ति विषै पर्याप्त हीद्रिय, त्रोद्रिय, चतुरिंद्रिय, पंचेंद्रिय जीवनि का अपना ग्रपना जघन्य ग्रवगाहन स्थान तँ लगाइ उत्कृष्ट स्थान पर्यन्त ग्यारह, आठ, आठ, दश स्थान हैं । तिनिकी क्रम तें वार्डन, सोलह, सोलह, वीस विदी लिखनि । तहा पर्याप्त वंद्रिय के इक्यावन ते लगाइ स्थान हैं, ताते सतरहवी पक्ति विपं प्रतिष्ठित प्रत्येक की छब्बीस विदी लिखी थी, तिनिके नीचे आदि की पचासवा स्थान की दोय बिंदी का नीचा को छोटि या वाईस विदी लिखनी । बहुरि जैसे ही नीचे-नीचे यादि की दोय- दोय बिडी का नीचा कौ छोडि वावनवां, तरेपनवां, चीवनवा स्थानक की विदी तें लगाइ मनोलह, नोलह, वीस विढी लिखनी । या प्रकार मत्स्यरचना विषे सूक्ष्म निगदचि अपर्याप्त का जघन्य श्रवगाहना स्थान की यादि देकरि सजी पंचेंद्री पति उत्कृष्ट श्रवगाहून स्थान पर्यन्त सर्व प्रवगाहन स्थाननि की प्रत्येक दोयपशु की विवक्षा करि तिन स्थानकनि की गणती के श्राश्रय सा हीनाधिक तं