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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १०३-१०४
सो जघन्य अवगाहना विषै जोडें, तीसरा अवगाहना का भेद होड, सो यह संख्यात भाग वृद्धि का दूसरा स्थान है । असें ही क्रम करि जघन्य श्रवगाहना की यथायोग्य असंख्यात का भाग दीए तीन, च्यारि, पाच इत्यादि सख्यात असख्यात पाए, ते जघन्य अवगाहना विषै जोडे निरतर एक-एक प्रदेश की वृद्धि करि संयुक्त श्रवगाहना के स्थान असंख्यात हो है । तिनिको उलघि कहा होड सो क है है
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श्रवरोग्गाहरणमाणे, जहण्णपरिमिदअसंखरासिहिदे । अवरस्सुर्वार उड्ढे, जेट्ठमसंखे ज्जभागस्स ॥१०३॥
अवरावगाहनाप्रमाणे, जघन्यपरिमितासंख्यातराशिते । अवरस्योपरि वृद्धे, ज्येष्ठम संख्यात भागस्य ॥१०३॥
टीका - एक जायगा जघन्य अवगाहना को जघन्य परिमित असंख्यात राशि का भाग दीए, जो प्रमाण आवै, तितने जघन्य अवगाहना विषे जोडे जितने होड, तितने प्रदेश जहां अवगाहना भेद विषै होइ, तहा असंख्यात भाग वृद्धिरूप अवगाहना स्थाननि का अंतस्थान हो है । एते ए असंख्यात भाग वृद्धि के स्थान कितने भए ? सो कहिए है - 'दी ते सुद्धे वट्टिहिदे रूवसंजुदे ठाणे' इस करण सूत्र करि असंख्यात भाग वृद्धिरूप अवगाहना का आदिस्थान का प्रदेश प्रमारण को अंतस्थान का प्रदेश प्रमाण मे स्यौ घटाए अवशेष रहै, ताकी स्थान-स्थान प्रति एक-एक प्रदेश वधता है, तात एक का भाग दीए भी तितने ही रहे, तिनमे एक और जोड़े जितने होइ, तितने असख्यात भाग वृद्धि के स्थान जानने ।
तस्सुवरि इगिपदेसे, जुदे अवत्तव्वभागपारंभो । वरसंखमवहिदवरे, रूऊणे अवरउवरिजुदे ॥ १०४ ॥
तस्योपरि एकप्रदेशे, युते अवक्तव्यभागप्रारंभ. । वरसंख्यातावहितावरे, रूपोने अवरोपरियुते ॥ १०४॥
टीका - पूर्वोक्त असख्यात भाग वृद्धि का अंत अवगाहना स्थान, तीहि विषै एक प्रदेश जुड़े प्रवक्तव्य भाग वृद्धि का प्रारंभरूप प्रथम अवगाहना स्थान हो है । बहुरि ताके आगे एक-एक प्रदेश वधता अनुक्रम करि अवक्तव्य भाग वृद्धि के स्थानकनि - उलघि एक बार उत्कृप्ट संख्यात का भाग जघन्य अवगाहना को दीए जो