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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
[ २०३ टीका - इहां नाम का एक देश, सो संपूर्ण नाम विषै वर्ते है । इस लघुकरण न्याय को प्राश्रय करि गाथा वि कह्या हुवा णिवा इत्यादि आदि अक्षरनि करि निगोद वायुकायिक आदि जीवनि का ग्रहण करना । सो इहां अवगाहना के भेद जानने के अथि एक यंत्र करना ।
तहां सूक्ष्म निगोदिया, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म तेजःकायिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक नाम धारक पांच सूक्ष्म तिस यंत्र के प्रथम कोठे विषै लिखे हो हैं।
बहुरि ताकी बरोबरि प्रागै बादर - वायु, तेज, जल, पृथ्वी, निगोद, प्रतिष्ठित प्रत्येक नाम धारक ये छह बादर पूर्ववत् अनुक्रम करि दूसरा कोठा विष लिखे हो है। पहिले जिनिके नाम लीए थे, तिन ही के फेरी लीए, इस प्रयोजन की समर्थता ते प्रथम कोठा विर्षे सूक्ष्म कहे थे; इहां दूसरा कोठा विष बादर ही है, असा जानना।
बहुरि ताके आगे अप्रतिष्ठित प्रत्येक, द्वीद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिद्रिय, पंचेद्रिय नाम धारक ए पांच बादर तीसरा कोठा विष लिखे हो है । इनि सोलहौ विष आदि के सूक्ष्म निगोदादिक ग्यारह, तिनिकै प्रागै तीन पंक्ति करनी। तहां एक-एक पक्ति विषै दोय-दोय कोठे जानने । कैसे ? सो कहिए है - पूर्व तीसरा कोठा कह्या था, ताके प्रागै दोय कोठे करने । तिनि विर्षे जैसे पहला, दूसरा कोठा विर्ष पांच सूक्ष्म, छह बादर लिखे थे, तैसे इहां भी लिखे हो है। बहुरि तिनि दोऊ कोठानि के नीचे पंक्ति विष दोय कोठे भौर करने । तहां भी तैसे ही पांच सूक्ष्म, छह बादर लिखे हो है। बहरि तिनिके नीचे पंक्ति विष दोय कोठे और करने, तहा भी तैसे ही पांच सूक्ष्म, छह बादर लिखे हो है । असे सूक्ष्म निगोदादि ग्यारह स्थानकनि का दोय-दोय कोठानि करि संयुक्त तीन पंक्ति भई । या प्रकार ऊपरि की पंक्ति विष पांच कोठे, तातै नीचली पंक्ति विष दोय कोठे, तातै नीचली पंक्ति विष दोय कोठे मिलि नव कोठे भए ।
अपदिठ्ठिदपत्तेयं, बितिचपतिचबि-अपदिट्ठिदं सयलं । तिचवि-अपदिदिं च य, सयलं बादालगुरिणदकमा ॥६॥
अप्रतिष्ठितप्रत्येक द्वित्रिचपत्रिचद्वयप्रतिष्ठितं सकलम् । त्रिचयप्रतिष्ठितं च च सकलं द्वाचत्वारिंशद्गुणितक्रमाः ॥९८॥