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[ गोम्मटार जीवगण्ड गाया १६-६७
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(२०००) र पांच से ( ५०० ) ग्रर ग्रहाई नै ( २५० ) योजन प्रमाण, इनिकों परस्पर गुणै नाडे बारा कोडि (१२५०००००० ) योजन प्रमाण वनफल हो है । जैसे रहे जो योजन रूप घनफल, तिनके प्रदेशनि का प्रनाग कीए एकेद्रिय के व्यारि बार संख्यातगुणा वनांगुल प्राग, द्वीत्रिय के तीन बार संख्यातगुणा वनांगुल प्रमाण, त्रोत्रिय के एक बार संख्यानगुरणा घनांगुल प्रमाण, चनुरिप्रिय के दीय बार संख्यातगुणा वनांगुल प्रनाण, पंचेद्रिय के पांच बार संख्यातगुणा वनांगुल प्रमाण प्रदेश उत्कृष्ट अवगाहना विपे हो है ।
या पर्याप्त हीद्रियादिक जीवनि का जवन्य अवगाहना का प्रमाण घर ताका स्वामी का निर्देश को कहे हैं -
बिपिपुण्हण्ण, अणूं धरीक कारणमच्छीसु । सिच्छ्यमच्छे विदंगुल संखं संखगुरिवकमा ॥३६॥ द्वित्रिचपपूर्णजघन्यमनुंधरीकुंकारणमनिका
। सिक्यकनत्स्ये वृदांगुलसंख्यं संख्यगुणितक्रमाः ॥९६॥
टीका - पर्यन्त होद्रिय विषै अनुंबरी, त्रीडियति विषं कुंयु, चनुरिद्रियनि विष कारणनलिका, पंचेद्रियनि विषै तंडुलमच्छ इनि जीवति वियं जघन्य अवगाहना विशेष करे जो शरीर र रोया हुवा क्षेत्र ( प्रदेशनि) का प्रमाण घनांगुल का संख्यातवां नग से लगाई न्यानगुणा अनुक्रम करि जानना । तहां हीत्रिय विषै व्यादि वीडिय व तीन बार चतुरिद्रिय विषै दो बार, पंचेंद्रिय विषै एक बारु, संख्यान का भाग या दीजिए, जैसा तांगुन मात्र पर्याप्तनि की जघन्य श्रवगाहता के प्रदेशनिका माग जानना । इनिका व चौडाई, लम्बाई, ऊंचाई का देश इहां नाहीं है । बल कीए को प्रदेशनि का प्रभाग नया, मो इहां कहा है।
मार्गे सर्व नैं जबस्य अवगाहना की यदि देकर उत्कृष्ट श्रवगाहना पर्वत शरीर की अवगाहना के भेद, तिनका स्वानी वा वान गुणकार, तिनिक गाय मंत्र करि इहां दिखावे हैं -
सुहमरिगवातेप्रानू बातेद्यापुरिणपदिट्ठिदं इबरं । वितिचपयादिल्लाणं, एयाराणं तिसेढीय ॥६७॥ सूक्ष्मनिवातेत्रानू, वातेत्रपृनिप्रतिष्ठितमितरत् । द्वित्रिचमाचानामेकादशानां त्रिवेणयः ||९|