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[ गोम्मटसार जीवकास गाथा ६५ अवगाह है । याका क्षेत्रफल कहिए है - समान प्रमाण लीए खंड कल्पै जितने खंड होड, तिस प्रमाण का नाम क्षेत्रफल है । तहां ऊचा, लम्बा, चीडा क्षेत्र का ग्रहण जहां होइ, तहा घन क्षेत्रफल वा खात क्षेत्रफल जानना । बहुरि जहां ऊचापना की विवक्षा न होइ अर लम्बा-चौडा ही का ग्रहण होइ, तहां प्रतर क्षेत्रफल वा वर्ग क्षेत्रफल जानना । वहुरि जहा ऊचा-चौडापना की विवक्षा न होइ, एक लम्बाई का ही ग्रहण होइ, तहां श्रेणी क्षेत्रफल जानना ।
सो इहा खात क्षेत्रफल कहिए है । तहा कमल गोल है, तातै गोल क्षेत्र का क्षेत्रफल साधनरूप करण सूत्र करि साधिए है -
वासोत्तिगुणो परिही, वासचउत्थाहदो दु खेत्तफलं ।
खेतफलं देहगुणं, खादफलं होइ सव्वत्थ ।। याका अर्थ - व्यास, जो चौडाई का प्रमाण, तातै तिगुणा गिरदभ्रमणरूप जो परिधि, ताका प्रमाण हो है । वहुरि परिधि को व्यास का चौथा भाग करि गुण, प्रतररूप क्षेत्रफल हो हैं । वहुरि याको वेध, जो ऊचाई का प्रमाण, ताकरि गुण सर्वत्र वातफल हो है । सो इहा कमल विष व्यास एक योजन, ताकी तिगुणा कीए परिधि तीन योजन हो है । याको व्यास का चौथा भाग पाव योजन करि गणे, प्रतर क्षेत्रफल पोग योजन हो है । याको वेध हजार योजन करि गुण, च्यारि करि अपवर्तन कीए, योजा स्वरूप कमल का क्षेत्रफल साड़ा सात सौ योजन प्रमाण हो है।
भाव- एक-एक योजन लम्बा, चौडा, ऊचा खड कल्पं इतने खड हो है ।
बलि दीद्रियनि विपै तीहि स्वयभूरमण समुद्रवर्ती शख विष वारह योजन लम्बा, योजन का पाच चौथा भाग प्रनाग चौडा, च्यारि योजन मुख व्यास करि युक्त, असा उत्कृप्ट अवगाह है । याका क्षेत्रफल करणसूत्र करि साधिए है -
व्यासस्तावद् गुरिणतो, बदनदलोनो मुखार्धवर्गयुतः।
हिरणश्चतुभिर्भक्तः, पंचगुणः शंखखातफलं ॥ यामा नर्थ - प्रथम व्यास को व्यास करि गुणिए, तामे मुख का आधा प्रमाण घवाड, तामे मुन्न का प्राधा प्रमाण का वर्ग जोडिए, ताका दूणा करिए, ताको च्यारि