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[ गोम्मटमार चीत्रकाण्ट गाथा ६८
वहरि गुरणश्रेणी आयाम का काल तातै विपरीत उल्टा अनुक्रम थरे हैं, सोई कहिए है - 'समुद्घात जिनकी श्रादि देकरि विशुद्ध मिथ्यादृष्टि पर्यंत गुणश्रेणी आयाम का काल क्रम करि संख्यातगुणा संख्यातगुणा है' । समुद्धात जिनका गुणश्रेणी आयामकाल अन्तर्मुहुर्तमात्र है । तातै स्वस्थान जिनका गुरणश्रेणी श्रायामकाल संख्यात गुणा है । तातै क्षीरगमोह का संख्यातगुरणा है । जैसे ही क्रम ते पीछे ते क्षपकश्रेणी वाले आदि विषे संख्यात संख्यात गुरणा जानना ।
तहां अंत विषे बहुत बार संख्यातगुरणा भया, तो भी करण परिणाम संयुक्त विशुद्ध मिध्यादृष्टि के गुणश्रेणी आयाम का काल अतर्मुहूर्तमात्र ही है, अधिक नाही । काहे ते ?
जाते अंतर्मुहूर्त के भेद वहुत हैं । तहां जघन्य अंतर्मुहूर्त एक ग्रावली प्रमाण है, सो सर्व तैं स्तोक है । वहुरि याते एक समय अधिक ग्रावली तै लगाइ एक-एक समय वधता मध्यम अंतर्मुहूर्त होइ । अंत का उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त एक समय घाटि दोय घटिकारूप मुहूर्त प्रमाण है । तहां ताके उच्छ्वास तीन हजार सात से तेहत्तरि अर एक उच्छ्वास की आवली संख्यात, यात दोय वार संख्यातगुणी श्रावली प्रमाण उत्कृष्ट मुहूर्त है । वहुरि - 'आदि अंते सुद्धे वट्टिहदे स्वसंजुदे ठाणे' इस सूत्र करि ग्रावलीमात्र जघन्य अंतर्मुहूर्त कौं दोय वार संख्यातगुणित आवली प्रमाण उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त विपं घटाइ, वृद्धि का प्रमाण एक समय का भाग दीए जो प्रमाण होइ, तामैं एक और जोर्ड जो प्रमाण होइ, तितने अंतर्मुहूर्त के भेद संख्यात प्रावली प्रमाण हो हैं ।
आगे जैसे कर्म सहित जीवनि का गुणस्थानकनि का आश्रय लीए स्वरूप अर तिस तिस का कर्म की निर्जरा का द्रव्य वा काल आयाम का प्रमाण, ताक निरूपण करि व निर्जरे हैं सर्व कर्म जिनकरि जैसे जे सिद्ध परमेष्ठी, तिनका स्वरूप क अन्यमत के विवाद का निराकरण लीए गाथा दोय करि कहैं हैं
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अट्ठवियकम्सवियला, सीदीभूदा रिपरंणा खिच्चा । अट्ठगुरणा दिकिच्चा, लोयग्गरिवासियो सिद्धा ॥ ६८ ॥ | १ अष्टविधकर्म विकलाः, शीतीभूता निरंजना नित्याः । अप्टगुरणाः कृतकृत्याः, लोकाग्रनिवासिनः सिद्धाः || ६८ ||
१. पटुखंडागन - बबन्ना पुस्तक १, पृष्ठ २०१, सूत्र २३, गाया १२७